25 नवंबर 2025 को सुबह 2 बजे, पूरे अमेरिका में जहाँ डे लाइट सेविंग टाइम (DST) माना जाता है, घड़ियाँ एक घंटे पीछे हट जाएंगी — 2:00 बजे से सीधे 1:00 बजे हो जाएगा। ये बदलाव आमतौर पर एक घंटे की अतिरिक्त नींद का तोहफा देता है, लेकिन इसके साथ ही सुबह का अंधेरा जल्दी आने लगता है, और शाम को डार्कनेस 7 बजे से पहले ही छा जाती है। यह बदलाव एक ऐसे कानूनी ढांचे के तहत हो रहा है, जिसे 1918 में शुरू किया गया था, और 2005 में एनर्जी पॉलिसी एक्ट द्वारा बदला गया था।
डे लाइट सेविंग टाइम की शुरुआत 1916 में जर्मनी ने पहली बार दूसरी विश्व युद्ध के दौरान बिजली बचाने के लिए की थी। अमेरिका ने 1918 में इसे अपनाया, लेकिन यह तब तक स्थायी नहीं हुआ, जब तक 1966 में स्टैंडर्ड टाइम एक्ट ने इसे फेडरल स्तर पर व्यवस्थित नहीं कर दिया। आज भी कई लोग सोचते हैं कि यह किसानों के लिए फायदेमंद है — लेकिन इतिहासकार कहते हैं, यह एक भ्रम है। असल में, यह उद्योगों और व्यापारियों के लिए शाम को अधिक खर्च करने के लिए बनाया गया था।
इस साल का डीएसटी बदलाव 9 मार्च 2025 को शुरू हुआ था, जब घड़ियाँ 2:00 बजे से 3:00 बजे हो गई थीं। अब 2 नवंबर को वापस आने वाला बदलाव इसका अंत होगा। यह बदलाव एक ही समय पर होगा — ईस्टर्न स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार 2 बजे, सेंट्रल के लिए 1 बजे, माउंटेन के लिए 12 बजे, और पैसिफिक के लिए शनिवार को रात 11 बजे। ज्यादातर स्मार्टफोन, कंप्यूटर और आधुनिक गाड़ियाँ खुद अपडेट हो जाएंगी, लेकिन अगर आपकी घड़ी मैनुअल है, तो शनिवार की रात उसे एक घंटा पीछे करना न भूलें।
अमेरिका के दो राज्य — अरिजोना और हवाई — डीएसटी नहीं मानते। लेकिन यहाँ एक अजीब बात है: नावाजो नेशन, जो अरिजोना के भीतर है, डीएसटी मानता है। इसी तरह, प्यूर्टो रिको, अमेरिकन सामोआ, गुआम और उत्तरी मैरियाना द्वीप भी इस बदलाव से बाहर हैं। ये अपवाद अक्सर भूल जाए जाते हैं, लेकिन इन जगहों के लोगों को अपने समय के साथ समायोजित होना पड़ता है।
एक अनजान व्यक्ति, जिसका नाम सिर्फ "सटन" दिया गया है, ने एबीसी न्यूज़ को बताया कि इस बदलाव के बाद दिन में धूप में अधिक समय बिताएं, और शराब और कैफीन का सेवन कम करें। यह सलाह वैज्ञानिक रूप से मान्य है — शरीर का घड़ी तालिका (सर्केडियन रिदम) तुरंत अपडेट नहीं होता। लोग दिन में थकान महसूस करते हैं, और रात को सोने में दिक्कत होती है। डॉक्टर्स कहते हैं, इस दौरान शाम को लाइट बंद कर दें, और सुबह 10 मिनट की धूप जरूर लें। ये छोटी आदतें नींद को सुधार सकती हैं।
पिछले 15 सालों में, कांग्रेस में कम से कम 30 बिल आए हैं जो परमानेंट डीएसटी को लागू करना चाहते थे। लेकिन हर बार ये बिल बिना वोट किए ही फंस जाते हैं। WKYC चैनल 3 के अनुसार, यह इसलिए होता है क्योंकि राज्यों के बीच अलग-अलग हित हैं — कुछ लोग शाम को अधिक रोशनी चाहते हैं, तो कुछ सुबह की रोशनी के लिए लड़ते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसका असली कारण राजनीति है: कोई भी पार्टी नहीं चाहती कि यह विषय अपने चुनावी लाभ के लिए उपयोग हो।
2026 की शुरुआत में, 8 मार्च को सुबह 2 बजे, घड़ियाँ फिर से आगे बढ़ेंगी — 2:00 बजे से 3:00 बजे। यह बदलाव अमेरिकी लोगों के लिए एक नियमित रूटीन बन चुका है। इस बार यह 107वां वर्ष है जब अमेरिका डीएसटी मना रहा है। लेकिन क्या यह अभी भी जरूरी है? जब तक कांग्रेस इसे स्थायी नहीं करती, तब तक हम हर साल दो बार घड़ियाँ बदलते रहेंगे — एक बार नींद खोकर, और एक बार नींद जीतकर।
2 नवंबर के बाद, सुबह का सूरज लगभग 15-20 मिनट जल्दी निकलेगा। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क में सुबह 7 बजे तक रोशनी नहीं होगी, जबकि पहले यह 6:40 बजे होती थी। यह बदलाव बच्चों के स्कूल जाने और लोगों के काम पर जाने के समय पर असर डालता है।
हाँ, अगर आपके पास स्मार्टफोन, आधुनिक टीवी या नवीनतम कार है, तो वे ऑटोमैटिकली अपडेट हो जाएंगी। लेकिन अगर आपके पास एनालॉग घड़ी, ओवन या रेडियो घड़ी है, तो उन्हें मैनुअली एक घंटा पीछे करना होगा। इसे भूलने से आपका अलार्म गलत समय पर बज सकता है।
हर साल कांग्रेस में बिल आते हैं, लेकिन राज्यों के बीच सहमति नहीं होती। कुछ राज्य शाम को अधिक रोशनी चाहते हैं, तो कुछ सुबह की रोशनी के लिए लड़ते हैं। इसके अलावा, राजनीतिक प्राथमिकताओं के कारण इस विषय को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
1970 के दशक में यह माना जाता था कि डीएसटी से बिजली बचत होती है, लेकिन 2008 के एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में यह बचत बस 0.5% तक है — जो लगभग एक घंटे की बिजली खपत के बराबर है। आज एसी, डिजिटल डिवाइस और लाइटिंग के कारण यह बचत लगभग नगण्य है।
12 टिप्पणि
Srujana Oruganti
5 नवंबर, 2025अरे भाई, फिर से ये घड़ी बदलने का नाटक? मैं तो हर साल इस दिन बस अपनी नींद को दफना देता हूँ। एक घंटा जीतने का नाम लेते हैं, पर दिन भर थकान झेलनी पड़ती है। अब तो सुबह 7 बजे भी अंधेरा है, जैसे दुनिया ही बंद हो गई हो।
Pranav s
6 नवंबर, 2025dekho yaar ye dst to bas ek scam hai… power save kaise hota hai jab toh ac aur led light sab chal raha hota hai? log sochte hain ek ghanta jyada soye toh mast hai… par 3 din tak dimag kharab rehta hai.
Ali Zeeshan Javed
7 नवंबर, 2025dekho bhaiyo, ye dst ka concept toh 1916 mein germany ne shuru kiya tha jahan electricity ki kami thi… ab hum 2025 mein ye kyun follow kar rahe? humare yahan toh 8 ghante tak suraj chalta hai… phir bhi hum usi ke hisaab se apni zindagi ka schedule bana rahe hain. ek dum bhaiya, yeh sab toh colonial legacy hai.
aur haan, arizona aur hawaii ko chhodkar sabko ek hi time zone mein rakh do… kyun karenge ek desh mein 4 time zones? humare desh mein bhi ek hi time zone hai… toh kyun na?
Žééshañ Khan
9 नवंबर, 2025It is imperative to note that the implementation of daylight saving time is not merely a temporal adjustment but a systemic artifact of industrial-era resource allocation. The notion that this practice benefits the general populace is, in fact, a fallacy perpetuated by commercial interests. The scientific consensus, as evidenced by the 2008 Department of Energy study, confirms negligible energy savings. Furthermore, the circadian disruption caused by biannual time shifts constitutes a public health concern of significant magnitude.
ritesh srivastav
9 नवंबर, 2025अमेरिका के लोग घड़ी बदल रहे हैं, हम इसके बारे में बात कर रहे हैं? भारत में तो बिजली नहीं आती, तो घड़ी बदलने की क्या जरूरत? ये लोग अपने देश के लिए भी नहीं सोचते, हमारे लिए फिर क्यों? ये डीएसटी अमेरिका का अपना खेल है।
sumit dhamija
11 नवंबर, 2025मैं तो सोचता हूँ कि अगर हम इस बदलाव को हटा दें तो लोगों को ज्यादा नींद मिलेगी, और ट्रैफिक एक्सीडेंट्स कम होंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह बदलाव दिल के दौरे और डिप्रेशन को बढ़ाता है। ये सिर्फ एक टेक्निकल चीज नहीं है - ये एक मानवीय मुद्दा है।
Aditya Ingale
12 नवंबर, 2025ये डीएसटी तो बिल्कुल जैसे कोई तुम्हारी घड़ी का टाइम जानबूझकर बदल दे… और फिर तुम्हें बताए बिना कि अब तुम्हारा दिन एक घंटा छोटा हो गया है। तुम तो सो रहे हो, और दुनिया तुम्हारे ऊपर एक घंटा चुरा लेती है। बस अब तुम जागोगे तो ये बताएगी - "हे भाई, तू एक घंटा खो चुका है!"
अब तो मैंने अपने फोन को भी अलार्म बंद कर दिया है… बस एक घंटे के लिए दुनिया को बर्बाद होने देता हूँ।
Aarya Editz
13 नवंबर, 2025इस समय के बदलाव के पीछे एक गहरा दार्शनिक सवाल छिपा है - क्या हम वास्तविकता के साथ समायोजित हो रहे हैं, या फिर हम एक कृत्रिम समय के लिए अपनी जीवन गतिविधियों को बदल रहे हैं? हमारा शरीर एक बायोलॉजिकल घड़ी चलाता है, जो सूरज के उदय और अस्त के साथ समायोजित होती है। हम जब इसे बदलते हैं, तो हम अपने आप को एक नकली दुनिया में फंसा रहे हैं।
क्या यही नहीं है कि हम सभी अपने जीवन के लिए बहुत ज्यादा टेक्नोलॉजी और नियमों को अपना रहे हैं, जबकि प्रकृति का साधारण नियम - सूरज का उदय - हमें अपने आप को संतुलित रखने का रास्ता दे रहा है?
Prathamesh Potnis
14 नवंबर, 2025हमें यह बात समझनी चाहिए कि डे लाइट सेविंग टाइम का उद्देश्य ऊर्जा बचाना नहीं है। यह व्यापारिक लाभ के लिए बनाया गया है। जब लोग शाम को अधिक रोशनी में बाहर निकलते हैं, तो वे अधिक खर्च करते हैं। यह एक आर्थिक नीति है, न कि एक वैज्ञानिक आवश्यकता।
इसलिए, यदि हम वास्तव में ऊर्जा बचाना चाहते हैं, तो हमें इस नीति को समाप्त करना चाहिए।
Rahul Kumar
15 नवंबर, 2025ye dst to bas ek yaad dilaane wali cheez hai ki hum sab kuchh control karne ki koshish karte hain… par asliyat mein hum kuchh nahi kar paate. ek ghanta change kardo, aur sab kuchh theek ho jayega? nahi bhai… bas ek aur baat yaad rakhna - hum sab ek hi samay mein jee rahe hain, chahe ghadiyan kahan bhi ho.
Shreya Prasad
17 नवंबर, 2025डीएसटी के कारण बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत होती है। सुबह अंधेरा रहता है, और बच्चे थके हुए आते हैं। शिक्षकों को भी इसका असर दिखता है। यह एक सामाजिक समस्या है, जिसे हम भूल रहे हैं।
GITA Grupo de Investigação do Treinamento Psicofísico do Atuante
18 नवंबर, 2025यह बदलाव नहीं, बल्कि इसकी लगातार दोहराव एक बुरी आदत है। हम इसे एक परंपरा के रूप में देख रहे हैं, जबकि यह एक अतिप्राचीन और अप्रासंगिक नीति है। अगर आज एक नया देश बन रहा होता, तो क्या वह यह बदलाव अपनाता? नहीं। तो फिर हम क्यों?