भारतीय माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म Koo, जो ट्विटर का विकल्प बनने की ओर अग्रसर था, अब अपने सफर का अंत करने जा रहा है। Koo की शुरुआत 2020 में अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिदावतका द्वारा की गई थी। यह प्लेटफॉर्म एक पीली चिड़िया के लोगो के साथ आया था और जल्द ही भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स के बीच लोकप्रिय हो गया।
Koo प्लेटफॉर्म ने अपनी शुरुआत से ही अपनी विशेषताओं की वजह से तहलका मचा दिया था। यह प्लेटफॉर्म 10 से अधिक भारतीय भाषाओं में उपलब्ध था। एक समय पर इसे भारतीय मंत्रियों और हस्तियों द्वारा खूब प्रमोट किया गया। 2021 में Koo ने सीरीज A राउंड में 4.1 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई और तीन महीने बाद अमेरिकी निवेश कंपनी Tiger Global के नेतृत्व में 31 मिलियन डॉलर और जुटाए। जून 2022 तक, Koo ने अपने विकास फंड में कुल 57 मिलियन डॉलर जुटाए और 285.5 मिलियन डॉलर के कुल मूल्यांकन तक पहुंच गया। जुलाई 2022 तक, Koo के 9 मिलियन मासिक सक्रिय उपयोगकर्ता हो गए थे।
शुरुआती सफलताओं के बावजूद, Koo को फंडिंग जुटाने में लगातार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कंपनी ने अपने कर्मचारियों की संख्या को पिछले चार सालों में पाँचवां हिस्सा कर दिया। संस्थापकों को अपने जेब से कर्मचारियों की तनख्वाह देनी पड़ी। Koo के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी अधिक फंडिंग जुटा पाना, जो कि अंततः संभव नहीं हो सका। Koo को भारतीय बाजार में विदेशी माइक्रोब्लॉगिंग दिग्गजों जैसे ट्विटर के साथ मुकाबला करना पड़ा, जो पहले से ही बाज़ार में मजबूत पकड़ बनाए हुए थे।
Koo ने अपनी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए ऑनलाइन मीडिया फर्म Dailyhunt के साथ अधिग्रहण वार्ता की। लेकिन यह वार्ता सफल नहीं हो सकी और अधिग्रहण को नाकाम कर दिया गया। परिणामस्वरूप, कंपनी ने अपने प्लेटफॉर्म को बंद करने का निर्णय लिया।
Koo के बंद हो जाने से भारत में सोशल मीडिया के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं। क्या भारतीय प्लेटफॉर्म्स वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकेंगे? क्या हमें और भी ऐसे प्लेटफॉर्म्स देखने को मिलेंगे जो स्थानीय भाषाओं में अपनी पहचान बना सकें? ये सवाल अब हर किसी के मन में हैं। Koo का सफर हमें यह भी याद दिलाता है कि किसी भी तकनीकी स्टार्टअप के लिए केवल अच्छी शुरुआत ही काफी नहीं होती, बल्कि निरंतर फंडिंग और नवाचार की भी आवश्यकता होती है।
जैसे कि Koo ने दिखाया, एक भारतीय एप्लिकेशन भी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकता है। लेकिन इसके लिए पर्याप्त संसाधनों और समर्थन की जरूरत होती है। Koo की कहानी भारतीय सामाजिक मीडिया उद्यमियों के लिए सीख हो सकती है कि किस प्रकार चुनौतियों का सामना करना और सबसे महत्वपूर्ण बातें क्या होती हैं।
7 टिप्पणि
fatima almarri
4 जुलाई, 2024क्या ये सच में हुआ? Koo को इतना सारा प्यार मिला था... अब ये बंद हो रहा है? 😔 मुझे लगता है कि हमने इसे अपनी भाषाओं के लिए बहुत कम समर्थन दिया। मैं भी अक्सर इसका इस्तेमाल करती थी, खासकर तमिल में लिखते वक्त। अब क्या करेंगे? 🤔
deepika singh
4 जुलाई, 2024अरे भाईयो! Koo तो बस एक शुरुआत थी! 🌟 अब तक जो भी भारतीय ऐप बना, उसे बाजार में टिकने के लिए लोगों का सच्चा सपोर्ट चाहिए! ट्विटर तो अमेरिका का है, हमारे लिए अपना घर बनाना होगा! अगर हम इसे नहीं संभालेंगे तो फिर किसे समझाएं? 💪🔥
amar nath
6 जुलाई, 2024मैंने Koo पर बिल्कुल अपनी मातृभाषा में पोस्ट किया था - बिहारी में! 😍 और लोगों ने रिप्लाई भी किया! ट्विटर पर तो हिंदी में लिखोगे तो लोग कहते हैं 'अंग्रेजी में लिखो'। Koo तो वाकई एक जन आंदोलन था... अब ये बंद हो गया तो क्या हमारी भाषाएं भी अब डिजिटल तौर पर मर रही हैं? 🤕
Pragya Jain
7 जुलाई, 2024ये सब विदेशी फंड और विदेशी टेक्नोलॉजी का नतीजा है! हमारे यहाँ कोई भी भारतीय ऐप बने तो उसे फंड नहीं मिलता, लेकिन अगर कोई अमेरिकी बनाए तो सब उसका समर्थन करते हैं! Koo ने जो किया, वो बहुत बड़ी बात है! अब ये बंद हो गया तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है? भारतीय निवेशकों की! जागो भारत!
Shruthi S
9 जुलाई, 2024बहुत दुख हुआ... 😢 Koo मुझे लगता था ये हमारी आवाज़ है। अब कहाँ जाएँगे हम? किसी ने तो इसे बचाने का कोई तरीका नहीं निकाला? 🫂
Neha Jayaraj Jayaraj
11 जुलाई, 2024अरे यार! Koo के बंद होने का राज़ तो ये है कि उन्होंने बस एक बार अपने फंडिंग वालों को बोल दिया - 'हम तो भारतीय भाषाओं के लिए हैं!' 😭 और फिर वो भाग गए! अब Dailyhunt भी नहीं खरीद पाया! ये तो सिर्फ एक ब्रांड की मौत नहीं, ये तो हमारी आत्मा की मौत है! 💔✨
Disha Thakkar
12 जुलाई, 2024क्या आप लोगों को लगता है Koo कोई 'असली' इनोवेशन था? ये तो बस एक ट्विटर क्लोन था, जिसे नेशनलिस्ट गुप्ता ने अपने नाम से बेचने की कोशिश की। अगर आप वाकई भाषाओं को समर्थन देना चाहते हैं, तो अपने घर पर बैठकर एक ओपन-सोर्स ऐप बनाएं। ये जो लोग रो रहे हैं, वो तो सिर्फ फीलिंग्स के लिए रो रहे हैं। असली टेक्नोलॉजी के लिए कोई भी लाइसेंस नहीं बेचता। 🙄