फ्रांस में एम्मानुएल मैक्रों का राजनैतिक सफर
फ्रांस के राजनीतिक गलियारों में एम्मानुएल मैक्रों का आगमन एक नई ऊर्जा और जोश के साथ हुआ था। 2017 में, एक युवा और आपूर्तिकर्ता नेता के रूप में, उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और एक नई दिशा में फ्रांस को ले जाने का वादा किया। उनका प्रारंभिक कार्यकाल प्रभावशाली था; उन्होंने प्रमुख रूप से प्रो-यूरोपियन और प्रो-बिजनेस नीतियों को अपनाया, जिसकी वजह से उनकी लोकप्रियता में तेजी आई। हालांकि, अब पांच वर्ष बाद, उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं, जिनकी वजह से उनका नेतृत्व कमजोर होता नजर आ रहा है।
संसदीय चुनाव और शक्ति संतुलन
हाल ही में किए गए संसदीय चुनावों के निर्णय ने मैक्रों की चुनावी लोकप्रियता को काफी हद तक प्रभावित किया है। जिन चुनावों में उनकी पार्टी की जीत निश्चित मानी जा रही थी, वहां अब शक्ति संतुलन बदला हुआ नजर आ रहा है। मैक्रों का सेंट्रिस्ट गठबंधन अपेक्षित हार की ओर बढ़ रहा है, और अगर इसके परिणामस्वरूप उन्हें एक प्रतिद्वंद्वी पार्टी के प्रधानमंत्री के साथ सत्ता साझा करनी पड़ी, तो यह उनका सबसे बड़ा राजनैतिक झटका होगा। विशेषकर, अगर वह प्रधानमंत्री सुदूर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली से हुआ, तो यह न केवल मैक्रों के लिए बल्कि पूरे फ्रांस के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य के लिए एक बड़ा बदलाव होगा।
मैक्रों की नीतियों पर प्रभाव
शक्ति बंटवारे की स्थिति में मैक्रों के प्रो-यूरोपियन और प्रो-बिजनेस नीतियों पर गहरा प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उनके युग में, फ्रांस ने यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया, वहीं घरेलू मोर्चे पर भी उन्होंने व्यापारिक नीतियों में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए। लेकिन अगर उन्हें एक प्रतिद्वंद्वी प्रधानमंत्री के साथ काम करना पड़ा, तो उनकी नीतियों को लागू करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
पीली बनियान प्रदर्शन और कोविड-19
मैक्रों का कार्यकाल विभिन्न समस्याओं से प्रभावित रहा है, जिनमें से सबसे प्रमुख है 'पीली बनियान' (Yellow Vest) प्रदर्शन। यह प्रदर्शन सामाजिक और आर्थिक असंतोष को दर्शाता है, जो मैक्रों की नीतियों के खिलाफ आम जनता की नाराजगी का प्रतीक बना। इसके साथ ही कोविड-19 महामारी ने भी फ्रांस की अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव डाला, जिससे मैक्रों की स्थिति और भी कमजोर हुई।
वैश्विक मंच पर फ्रांस की भूमिका
मैक्रों की कमजोर स्थिति का प्रभाव केवल घरेलू नीतियों पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर भी दिखाई देगा। उदाहरण के लिए, यूक्रेन और रूस के बीच विवाद के मामले में फ्रांस के समर्थन में कमी आ सकती है। आने वाले NATO शिखर सम्मेलन वॉशिंगटन में आयोजित होगा, जहां मैक्रों की घटती हुई प्रभावशीलता के संकेत और भी स्पष्ट हो सकते हैं।
विश्लेषकों की राय
विश्लेषकों का मानना है कि संसदीय चुनाव के परिणामस्वरूप, मैक्रों को अपनी सत्ता बनाए रखने में काफी संघर्ष करना पड़ेगा। उनकी लोकप्रियता में आई गिरावट और प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनका नेतृत्व संकटग्रस्त हो सकता है।
अंतिम शब्द
एम्मानुएल मैक्रों का राजनीतिक सफर एक नेतृत्व का सफर है जिसने कई ऊँचाइयों और निचाइयों को देखा है। आज जहां वे कमजोर स्थिति में हैं, वहीं उनका प्रारंभिक दौर एक नई राजनीति की उम्मीद को दर्शाता है। आगे क्या होगा, यह समय ही बताएगा, लेकिन आज की स्थिति में मैक्रों का नेतृत्व कमजोर और चुनौतीपूर्ण नजर आता है।
12 टिप्पणि
udit kumawat
9 जुलाई, 2024मैक्रों का जो जोश था, वो अब बस यादें हैं। फ्रांस में भी लोगों को बस नौकरी चाहिए, नीतियाँ नहीं। और अब जो बात है, वो बात है।
Ankit Gupta7210
10 जुलाई, 2024ये सब बकवास है जो लिखा है! फ्रांस के लोग खुद बेकार हैं, जो इतनी आसानी से एक युवा नेता को फेंक देते हैं! हमारे देश में तो ऐसे लोगों को भगवान समझा जाता है! ये सब यूरोपीय नाटक है!
Yash FC
10 जुलाई, 2024इंसान बदलता है, नीतियाँ बदलती हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या वो बदलाव उसके लिए था या उसके आसपास के लिए? मैक्रों ने शुरुआत में एक नए दृष्टिकोण का सपना देखा, लेकिन जब दुनिया ने उसे दबा दिया, तो वो भी झुक गया। शायद ये सब इंसानी है।
sandeep anu
10 जुलाई, 2024अरे भाई ये सब बहुत बढ़िया लिखा है! लेकिन याद रखो, एक नेता तभी असली होता है जब वो अपनी गलतियों को स्वीकार करे! मैक्रों ने कोशिश की, अब वो दूसरी बार आएगा और उसका जुनून फिर से जलेगा! ये तो बस एक अवधि है!
Shreya Ghimire
12 जुलाई, 2024ये सब एक योजना है... जानते हो क्या? यूरोपीय एलिट्स ने इसे तैयार किया है कि फ्रांस के लोग एक नेता को अस्वीकार कर दें ताकि उनके लिए एक नया नियंत्रण बन सके। और फिर वो नेशनल रैली को बढ़ावा देंगे, ताकि भारत जैसे देशों को अपने खिलाफ उत्प्रेरित किया जा सके। ये सब बहुत गहरा है, और तुम सब इसे नहीं समझ रहे।
Prasanna Pattankar
12 जुलाई, 2024ओह तो अब ये भी बन गया कि नेता कमजोर हो गया? क्या तुम्हें लगता है कि ये अचानक हुआ? उसने तो अपने दोस्तों को बड़े-बड़े फैक्ट्रियों को दे दिया, और अब लोग बाहर निकले हैं। और तुम ये लिख रहे हो कि 'उसकी नीतियाँ' प्रभावित हुईं? बस अपनी आँखें खोलो, ये तो साफ़ है।
Bhupender Gour
14 जुलाई, 2024मैक्रों ने तो कुछ भी नहीं किया बस फोटो लेने के लिए बैठा रहा और अब लोग उसे भूल गए। बस ऐसा ही होता है जब लोग बोलते हैं बट नहीं करते।
sri yadav
15 जुलाई, 2024तुम लोग इतने गंभीरता से लिख रहे हो जैसे ये कोई शेक्सपियर का नाटक है। ये तो बस एक बॉस का अपने ऑफिस में फेल होना है। अगर तुम्हें लगता है कि ये 'राजनीति' है, तो तुम बहुत बड़े अपने आप को दिखाने की कोशिश कर रहे हो।
Pushpendra Tripathi
16 जुलाई, 2024तुम सब ये बातें बता रहे हो लेकिन क्या किसी ने पूछा कि उसने अपने अंदर क्या बदलाव किया? उसने अपने दोस्तों को बड़े बैंकों में बैठाया, और अब जब लोग भूखे हैं, तो वो बोल रहा है कि 'मैं यूरोप के लिए काम कर रहा हूँ'। ये तो बस एक अपराध है।
Indra Mi'Raj
17 जुलाई, 2024मैक्रों ने जो शुरुआत की वो अच्छी थी... लेकिन जब दुनिया ने उसे चुनौती दी तो वो बहुत अकेला महसूस हुआ। शायद उसे बस कोई सुनने वाला चाहिए था। ये दुनिया तो बहुत जल्दी फैसले कर देती है।
Harsh Malpani
17 जुलाई, 2024बस एक बात बताओ क्या हुआ? लोग थक गए और उन्होंने अपने घरों में बैठकर फिर से सोचा। अब जो होगा वो होगा। बस इतना ही।
INDRA SOCIAL TECH
19 जुलाई, 2024राजनीति तो हमेशा एक आईना होती है। जो लोग उसमें देखते हैं, वो अपनी ही चाहतें देखते हैं। मैक्रों का अंत नहीं, बल्कि एक नए सवाल की शुरुआत है।