जब अभिषेक गुप्ता, निर्देशक और वॉरिएंट फ़िल्म्स प्रोडक्शन ने 12 फरवरी 2024 को आई वांट टू टॉक रिलीज़ किया, तो कई लोग उम्मीद कर रहे थे कि कथा‑शैली में नई हवा चलेगी। लेकिन फिल्म का बॉक्स‑ऑफ़िस आंकड़ा 40 करोड़ रुपये के बजट के मुकाबले सिर्फ 2.14 करोड़ रुपये रहा, जिससे यह 2024 की सबसे बड़े धंधे‑खिलाड़ी डिस्कवरी में से एक बन गई। आश्चर्यजनक बात यह है कि वही फिल्म ने 2024 फिल्मफ़ेयर पुरस्कारमुंबई में तीन प्रमुख श्रेणियों में जीत हासिल की।
वॉरिएंट फ़िल्म्स ने इस प्रोजेक्ट को अपने ‘डिज़ायन‑सेंसेशन’ स्लॉट में रखा था। तारा सिंह, मुख्य कलाकार ने अपने किरदार को ‘कहानी के भीतर के दर्द को सच्चाई‑से‑बोले’ रूप में पेश किया, जो दर्शकों को व्यक्तिगत स्तर पर जोड़ना चाहिए था। तकनीकी तौर पर, फ़िल्म ने 4K में शूटिंग, Auro‑3D साउंड और प्रयोगात्मक लाइटिंग का इस्तेमाल किया – सभी को मिलाकर बजट‑फ्लाई‑हाय का माहौल बन गया।
रिलीज़ के पहले दो हफ़्ते में टिकट बिक्री मुंबई और दिल्ली में धीमी रही। राजीव शर्मा, बॉक्स‑ऑफ़िस विश्लेषक के मुताबिक, ‘फ़िल्म का टार्गेट ऑडियंस‑सेगमेंट सही नहीं था, और मार्केटिंग में ख़र्चे को बढ़ाने की बजाय कंटेंट‑पर्सनलाइज़ेशन की कमी थी’।
मात्र 2 % दर्शक ही इसे देखते हुए, सोशल मीडिया पर रिव्यूज़ ने ‘आकांक्षा‑से‑भरी लेकिन निराशा‑से‑भरी’ जैसी रेटिंग दी।
यह तथ्य कि बॉक्स‑ऑफ़िस पर फेल हुई फ़िल्म ने 2024 फिल्मफ़ेयर पुरस्कार में तीन ट्रॉफी जीतें, दर्शाता है कि मोनिटरी परफ़ॉर्मेंस हमेशा आर्टिस्टिक वैल्यू की ग्वारंटी नहीं देती। विजेता श्रेणियाँ थीं:
फ़िल्मफ़ेयर प्रवक्ता ने कहा, ‘फ़िल्म की कहानी और साउंडट्रैक को जजों ने कलात्मक दृष्टिकोण से बहुत प्रशंसा की, जबकि दर्शकों ने इसे समझने में कठिनाई महसूस की’।
वॉरिएंट फ़िल्म्स के सीईओ सुधीर मेहता, मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने इंट्रव्यू में कहा, ‘हमने इस प्रोजेक्ट में रचनात्मक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी, लेकिन शायद बाजार की प्रायोगिक ज़रूरतें कम समझी। स्पष्ट है कि ऐतिहासिक विचारों को व्यावसायिक मॉडल के साथ संतुलित करना आवश्यक है’।
अभिषेक गुप्ता ने कहा, ‘फ़िल्म को समीक्षकों ने सराहा, लेकिन असली चुनौती थी – दर्शकों को सही समय पर सही संदेश देना’।
इस दुखदाइ केस ने उद्योग में कई सवाल उठाए। फिल्म फाइनेंसिंग कंपनियां अब ‘बजट‑टेस्टेड’ प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दे रही हैं। साथ ही, विपणन विभागों को ‘डेटा‑ड्रिवेन टार्गेटिंग’ की ओर रुख करना पड़ेगा। विशेषज्ञ कहते हैं, ‘नवाबीरिएँ को कमाई‑केंद्रीकरण से संतुलित करना ही अगली बड़ी चुनौती है’।
इसी के चलते, इस साल के अंत तक भारतीय बॉलिवुड में कई छोटे‑बजट फ़िल्मों का प्रीप्रोडक्शन रोक दिया गया है, ताकि वित्तीय जोखिम को कम किया जा सके।
जैसे ही ‘आई वांट टू टॉक’ का नाम चर्चाओं में दोहराया जाता है, यह स्पष्ट हो रहा है कि एक फ़िल्म की कीमत केवल टिकेट बिक्री से नहीं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक और कलात्मक योगदान से भी तय होती है। अगर फ़िल्मफ़ेयर ने इसे मान्य किया, तो यह संकेत देता है कि निर्माता भी जोखिम ले कर कुछ नया आज़मा सकते हैं – बशर्ते उन्हें सही मार्केटिंग‑इकोसिस्टम मिले।
विशेषज्ञों का मानना है कि फिल्म का प्रचार‑प्रसार मुख्य शहरों तक ही सीमित रहा, जबकि छोटे शहरों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंच कम थी। इसके अलावा, कहानी‑स्तर पर भी दर्शकों को जुड़ाव महसूस नहीं हुआ, जिससे टिकट बिक्री पर असर पड़ा।
फ़िल्म ने 2024 फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (तारा सिंह), सर्वश्रेष्ठ संगीत (अमन जोशी) और क्रिटिक्स चॉइस बेस्ट लघु फ़िल्म (निर्देशक अभिषेक गुप्ता) के लिए तीन ट्रॉफी जीतें।
हाँ, अनुमानित नुकसान लगभग 38 करोड़ रुपये बताया जा रहा है, क्योंकि फिल्म का उत्पादन, मार्केटिंग और वितरण खर्च कुल मिलाकर 40 करोड़ रुपये था, जबकि कुल कमाई सिर्फ 2.14 करोड़ रुपये रही।
मुख्य सीख यह है कि बजट प्रबंधन के साथ‑साथ मार्केटिंग रणनीति को भी लक्षित दर्शकों के अनुसार तैयार करना चाहिए। डेटा‑ड्रिवेन रिलीज़ प्लान और स्थानीय स्तर पर प्रमोशन की आवश्यकता पर बल देना चाहिए, ताकि बॉक्स‑ऑफ़िस जोखिम कम हो सके।
13 टिप्पणि
parvez fmp
12 अक्तूबर, 2025यह फिल्म तो पूरी टेबलक्लैशन 😂
akash shaikh
13 अक्तूबर, 2025ओह, बॉक्स‑ऑफ़िस देख के तो लग रहा है जैसे सिनेमा हॉल में एसी बंद कर दी गई हो, लेकिन जजों ने फिर भी कर्टन‑कॉल्लेक्ट किया। आखिर किसको परवाह है टैक्स‑इन्कम से, जब दिल को शेकस्पीयर का फील मिल जाए।
Anil Puri
14 अक्तूबर, 2025बॉक्स‑ऑफ़िस फेल बताना आसान है, लेकिन फ़िल्म की एस्थेटिक क्वालिटी को देखते हुए ये बिलकुल भी फर्ज़ नहीं। कई लोग तो कहते हैं कि ये प्रोजेक्ट हिट नहीं हुआ, पर असल में यह दर्शकों को एक नई दरीचा (दृष्टिकोण) दे गया। असली सवाल है: क्या हम केवल पैसा देखकर ही किंग बना सकते हैं?
poornima khot
15 अक्तूबर, 2025फ़िल्म की सराहना करना हमारे सांस्कृतिक दायित्व का हिस्सा है। फिल्म ने सामाजिक मुद्दों को संवेदनशीलता से उठाया, और कलाकारों ने अपने प्रदर्शन से दिल को छू लिया। बजट का नुकसान एक आंकड़ा है, पर कलात्मक मूल्य अनमोल है।
Mukesh Yadav
16 अक्तूबर, 2025सही कहा भाई, ये सब फाइनेंस का खेल है, पर असली साजिश तो यही है कि बड़े बजट की फ़िल्में हमेशा बेफ़िक्र रह जाती हैं, जबकि छोटे प्रोजेक्टों को जाँच‑परख की सुई से देखेंगे। यही कारण है कि कई बार असली कलाकृतियों को रोक दिया जाता है।
Yogitha Priya
17 अक्तूबर, 2025अवॉर्ड्स के बारे में बात करते हुए मैं कहना चाहूँगी कि यह दिखाता है कि आर्थिक सफलता हमेशा औसत नहीं होती। कलाकारों की मेहनत और नैतिक जिम्मेदारी को देखना चाहिए, न कि मात्र नंबरों को।
Rajesh kumar
18 अक्तूबर, 2025इंडिया की फिल्म इंडस्ट्री में अक्सर कहा जाता है कि पैसा और ट्रेडिशन की दो धुरी हैं, लेकिन इस मुद्दे पर मेरा विचार थोड़ा अलग है।
आई वांट टू टॉक जैसे प्रोजेक्ट ने दिखाया कि जब बजट बड़ी और दिल बड़े हों तो परिणाम हमेशा मापदंड नहीं होते।
पहले तो लोग कहते हैं कि बॉक्स‑ऑफ़िस फेल है, लेकिन हम राष्ट्रीय भावना को क्यों नहीं देखते जो स्क्रीन पर उभरी थी?
आर्टिस्टिक वैल्यू को समझने के लिए हमें सिर्फ कलेक्शन नहीं, बल्कि कहानी की गहराई और सामाजिक प्रभाव को देखना चाहिए।
तारा सिंह की एक्टिंग ने कई युवा अभिनेताओं को प्रेरित किया, यह कोई साधारण आंकड़ा नहीं है।
संगीतकार अमन जोशी ने साउंडस्केप को इतना जटिल बनाया कि हर सुनने वाले को नई ध्वनि यात्रा पर ले गया।
फिल्मफ़ेयर जजों ने इस फ़िल्म को इसलिए चुना क्योंकि उन्होंने देखते हैं कि फिल्म में एक सच्ची बात है, न कि सिर्फ बक्सा‑ऑफ़िस की रफ़रें।
बॉक्स‑ऑफ़िस का आंकड़ा अक्सर बाहरी फ़ैक्टरों से प्रभावित होता है, जैसे प्रमोशन, रीलीज़ टाइम, और थीम का सिटी‑डेमोग्राफिक।
यदि हम इसको केवल आर्थिक नुकसान की धारा में देखते हैं, तो हम एक बड़ी सांस्कृतिक गिरावट को नजरअंदाज़ कर रहे हैं।
वॉरिएंट फ़िल्म्स ने प्रयोगात्मक लाइटिंग और 4K शूटिंग में जो जोखिम उठाया, वह भारतीय सिनेमा में नया मापदण्ड स्थापित कर सकता है।
भविष्य में यदि प्रोडक्शन हाउस यही साहस दिखाएगा, तो हम अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चमक सकते हैं।
न्यायालय में वित्तीय तर्क ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक कर्तव्य भी माना जाना चाहिए।
वित्तीय नुकसान को कम करने के लिए डेटा‑ड्रिवेन मार्केटिंग ज़रूरी है, लेकिन उससे फ़िल्म की असली पहचान नहीं मिटेगी।
सारांश में, आई वांट टू टॉक का केस हमारी इंडस्ट्री को दोधारी तलवार जैसा दिखाता है: एक तरफ जोखिम, दूसरे तरफ इनाम।
आखिरकार, अगर हम सिर्फ कमाई पर ही फोकस करेंगे तो नई कहानियों के जन्म को रोक देंगे, और यही सबसे बड़ा नुकसान है।
Bhaskar Shil
19 अक्तूबर, 2025आपका विस्तृत विश्लेषण सराहनीय है; विशेषकर आपने डेटा‑ड्रिवेन मार्केटिंग के महत्व को उजागर किया। हालांकि, तकनीकी पहलुओं के लिए हमें ROI (Return on Investment) मेट्रिक्स को भी ध्यान में रखना चाहिए। इस तरह के प्रयोगात्मक प्रोजेक्ट अक्सर माइक्रो‑सेगमेंट पर फोकस करके सफल होते हैं। इस पर आगे के केस स्टडीज की जरूरत है।
Halbandge Sandeep Devrao
20 अक्तूबर, 2025From a critical standpoint, the incongruence between the film's artistic ambition and its market positioning reflects a systemic misalignment within contemporary Indian cinema. The award recognitions underscore a peer-reviewed validation of aesthetic merit, while the box-office figures reveal a failure in audience segmentation strategies. Such dichotomy necessitates a bifurcated approach: preserving creative integrity whilst integrating robust analytics for distribution. Only then can industry stakeholders reconcile the divergent metrics of success.
One You tea
21 अक्तूबर, 2025जब तक आप इस तरह के "आर्टिस्टिक वैल्यू" को क्लीयर-ट्रेडिंग के रूप में नहीं देखेंगे, तब तक आपको समझ नहीं आएगा कि अंत में कौन जीत रहा है। व्यक्तिगत रूप में मैं मानता हूँ कि ये सभी परतें केवल एक शैलियों का शो बना रहे हैं, जो सामान्य दर्शक को भटकाते हैं।
Hemakul Pioneers
22 अक्तूबर, 2025विचार करने की बात है कि फ़िल्म की गहराई को समझना केवल समीक्षकों का काम नहीं, बल्कि आम दर्शकों का भी है। जब हम संस्कृति और कला को आर्थिक आँकड़ों से जोड़ते हैं, तो हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
Shivam Pandit
23 अक्तूबर, 2025बिलकुल सही बात, हेमा!; फ़िल्म की आंतरिक मूल्य को समझते हुए हमें; आर्थिक वास्तविकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए; यह संतुलन ही इंडस्ट्री को आगे ले जा सकता है।
s.v chauhan
24 अक्तूबर, 2025चलो, सब मिलकर इस केस से सीख लेते हैं-साहसिक विचार और मार्केटिंग का सही मिश्रण ही अगली बेस्टसेलर बनाता है! किसी भी प्रोजेक्ट को पूरी एनर्जी और सहयोग से आगे बढ़ाना चाहिए, चाहे बॉक्स‑ऑफ़िस कैसे भी हो।