डोडा, जम्मू और कश्मीर के एक शांतिपूर्ण रात को जब नागरिक गहरी नींद में थे, एक दर्दनाक घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। 15 जुलाई, 2024 की रात, आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में हमारे चार बहादुर सैनिक शहीद हो गए। इन शहीद सैनिकों में एक कैप्टन और तीन अन्य जवान शामिल थे, जिनकी शहादत ने पूरे देश को गमगीन कर दिया है।
रात करीब 11 बजे सुरक्षा बलों को खुफिया जानकारी मिली कि कुछ आतंकवादी डोडा के एक ग्राम में छिपे हुए हैं। सेना ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आतंकवादियों को घेरे में लिया। पहले दोनों पक्षों के बीच कुछ बिंदुओं पर गोलीबारी शुरू हुई, जिसने कुछ ही मिनटों में युद्ध का रूप ले लिया। मुठभेड़ ने रात भर चली और इस दौरान चार भारतीय सैनिक देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।
शहादत प्राप्त करने वाले सैनिकों में कैप्टन अमनदीप सिंह, जो कि पंजाब के रहने वाले थे, के अलावा जवान राजेश कुमार, सुरेश यादव और मोहम्मद आरिफ भी शामिल हैं। इन सभी ने देश की सेवा में अपनी जान कुर्बान कर दी। परिवार वालों को इस दुखद समाचार से बड़ी क्षति हुई है और पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई है।
घटना के बाद, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने इस मुठभेड़ को राष्ट्र के लिए एक महान क्षति बताया और शहीद सैनिकों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष हमें हमारे सुरक्षा बलों की महत्ता का आभास कराता है, जो प्रत्येक दिन हमारे देश की रक्षा में तत्पर रहते हैं।
जम्मू और कश्मीर, लंबे समय से आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। वहां के नागरिक और सुरक्षा बल लगातार इस दहशतगर्दी से जूझ रहे हैं। सुरक्षा बलों के जवान हमेशा खतरे का सामना करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। यह घटना हमें एक बार फिर याद दिलाती है कि हमारे सैनिक अपने देश की रक्षा के लिए क्या-क्या त्याग करते हैं और उनकी शहादत को हम कभी भी नहीं भूल सकते।
शहीद सैनिकों के लिए पूरे देश में श्रद्धांजलि और संवेदनाएं व्यक्त की जा रही हैं। विभिन्न शहरों और गांवों में कैंडल मार्च आयोजित किए जा रहे हैं, जहां लोग न केवल शहीदों के बलिदान को सलाम कर रहे हैं, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के उपायों की भी मांग कर रहे हैं। नागरिकों का आक्रोश और दु:ख इस बात का संकेत है कि हमारी सेना के जवानों की शहादत को पूरे देश में गंभीरता से लिया जाता है।
भारत लंबे समय से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। जम्मू और कश्मीर, विशेष रूप से, ऐसे इलाकों में से एक है जहां आतंकवादी गतिविधियाँ ज्यादा होती हैं। प्रदेश में सुरक्षाबलों द्वारा लगातार ऑपरेशनों के बावजूद, आतंकवादी लगातार नए तरीकों से हमला करने की कोशिश करते रहते हैं। यह संघर्ष आसान नहीं है, लेकिन हमारी सुरक्षा बल के जवान इस मुश्किल घड़ी में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।
डोडा की यह मुठभेड़ हमें एक बार फिर याद दिलाती है कि हमारे देश के जवान किस प्रकार अपने जीवन की आहुति देकर हमें सुरक्षित रखते हैं। कैप्टन अमनदीप सिंह और उनके साथियों की शहादत हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी। हम सभी को इस दुखद घटना से सीख लेते हुए अपने सुरक्षाबलों के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए और आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में साथ देना चाहिए।
14 टिप्पणि
INDRA SOCIAL TECH
18 जुलाई, 2024ये सब तो हमेशा की बात है। सैनिक शहीद होते हैं, देश रोता है, ट्रेंड होता है, और फिर भूल जाता है। असली सवाल ये है कि अगली बार कब तक इंतजार करेंगे जब तक एक और नाम ट्रेंड न हो जाए।
Indra Mi'Raj
19 जुलाई, 2024कैप्टन अमनदीप सिंह के बारे में सोचकर मेरी आँखें भर आती हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी को देश के लिए दे दिया। इतना बलिदान करने वाले लोगों को हम बस एक ट्वीट या फोटो पर रोक नहीं सकते। उनके परिवार को असली समर्थन चाहिए।
Harsh Malpani
19 जुलाई, 2024बहुत बढ़िया काम किया सेना ने। इन लोगों की याद तो हमेशा रहेगी। अब बस इतना कहो कि अगली बार भी ऐसा ही बर्ताव करेंगे या फिर बस ट्रेंड बनाकर छोड़ देंगे?
Prabhat Tiwari
20 जुलाई, 2024ये सब चार शहीद तो बस टारगेटेड ऑपरेशन का हिस्सा थे। असली सच ये है कि आतंकवादी अभी भी हमारे अंदर छिपे हैं। राज्य सरकारें अपने लोगों को नहीं बचा पा रहीं। आईएसआई के साथ डीप डीपी लिंक्स हैं। ये सब फेक न्यूज़ है जो मीडिया फेलो बना रहे हैं।
Palak Agarwal
22 जुलाई, 2024मैंने डोडा के एक गांव के एक बुजुर्ग से बात की थी। उन्होंने कहा कि वो आतंकवादी उनके गांव के लोगों को पहले भी घेर चुके थे। लेकिन सेना ने उन्हें बचा लिया। शहीदों का बलिदान बेकार नहीं हुआ।
Jinit Parekh
24 जुलाई, 2024ये चारों शहीद बिल्कुल सही जगह पर शहीद हुए। क्योंकि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का जिक्र तभी होता है जब कोई शहीद होता है। अगर ये उत्तर प्रदेश में होता तो तुरंत नेशनल टीवी पर ट्रेंड हो जाता। ये द्वैतवाद है।
udit kumawat
24 जुलाई, 2024फिर से ये सब। एक बार फिर शहीदों के नाम लिखे जा रहे हैं। लेकिन उनके परिवारों को क्या मिला? कोई सरकारी घर? कोई नौकरी? कोई शिक्षा? नहीं। बस एक फ्लैग और एक ट्रेंड।
Ankit Gupta7210
25 जुलाई, 2024ये आतंकवादी बस एक तरह से हमारी बुद्धि का परीक्षण कर रहे हैं। अगर हम उनके खिलाफ जोर से नहीं लड़ेंगे तो ये अगले साल दिल्ली में भी आ जाएंगे। अब तक तो हमने बस रिपोर्ट लिखी है। अब ऑपरेशन शुरू करो।
Yash FC
25 जुलाई, 2024शहीदों के बलिदान से देश बचता है। लेकिन क्या हम उनके बलिदान के बाद भी उनके लिए जिम्मेदार बनते हैं? क्या हम उनके परिवारों के लिए एक बेहतर भविष्य बनाते हैं? शहादत का मतलब बस फ्लैग लहराना नहीं है।
sandeep anu
26 जुलाई, 2024ये चार जवान असली हीरो हैं। उन्होंने अपनी जिंदगी दी ताकि हम आज घर पर बैठकर टीवी देख सकें। उनकी याद के लिए एक असली यादगार बनाना चाहिए। एक स्मारक जहां बच्चे आएं और सीखें कि शहादत क्या होती है।
Shreya Ghimire
26 जुलाई, 2024ये सब बस एक बड़ा धोखा है। आतंकवादी जिनके खिलाफ ये ऑपरेशन हुआ, वो सब भारतीय ही हैं। जो लोग आतंकवाद के नाम पर अपनी नौकरी बचा रहे हैं, वो अपने खुद के बच्चों को बेच रहे हैं। इन शहीदों को बर्बाद करने के लिए इतना झूठ बोला जा रहा है।
Prasanna Pattankar
26 जुलाई, 2024क्या ये शहीद बच्चों के लिए शहीद हुए? नहीं। वो तो बस एक बड़े राजनीतिक गेम के लिए खेले गए। अगर ये ऑपरेशन वाकई जरूरी था तो फिर इतनी बड़ी जान ली क्यों? एक गोली और एक बातचीत भी काफी होती।
Bhupender Gour
27 जुलाई, 2024शहीदों को नमन। अब बस इतना कहो कि अगली बार जब कोई आतंकवादी आएगा तो उसे भी शहीद बना देंगे या फिर बस इसे नए ट्रेंड में डाल देंगे?
INDRA SOCIAL TECH
28 जुलाई, 2024ये शहीद तो बस एक नंबर बन गए। जब तक देश उनके परिवारों को असली समर्थन नहीं देगा, तब तक ये सब बस एक ट्रेंड ही रहेगा।