पेरिस ओलंपिक 2024 में भारतीय तीरंदाजी का प्रदर्शन इस बार वाकई अविस्मरणीय रहा। अंकिता भकत और धीरज बोम्मादेवरा ने मिश्रित टीम तीरंदाजी में अपने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया। कांस्य पदक के मैच में उन्होंने अमेरिका की मजबूत टीम के सामने संघर्ष किया, पर अंततः उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
कांस्य पदक के इस मैच में भकत और बोम्मादेवरा ने जोरदार मुकाबला करते हुए चार सेट खेले। पहले सेट में स्कोर था 37-38, दूसरे सेट में 35-37, तीसरे सेट में 38-34, और चौथे सेट में 35-37। भारतीय टीम ने भले ही हार का सामना किया हो, लेकिन उनके प्रयासों ने भारतीय तीरंदाजी के लिए एक नई दिशा प्रस्तुत की है।
अंकिता भकत का प्रदर्शन दबाव में आया, जिसमें उन्होंने दो बार 7 अंक और कुछ 10 अंक हासिल किए। वहीं, धीरज बोम्मादेवरा ने अधिक स्थिरता दिखाई और चार बार 10 अंक मारे। इस मुकाबले में हालांकि भारतीय टीम विजेता नहीं बन पाई, फिर भी उनके प्रदर्शन से कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखने को मिले हैं।
सेमीफाइनल में, भारतीय टीम को दक्षिण कोरिया से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन पहले राउंड में उन्होंने इंडोनेशिया और दूसरे राउंड में स्पेन को हराकर सेमीफाइनल तक का सफर तय किया। इन विजयों ने भारतीय तीरंदाजी के आत्मविश्वास को बढ़ाया है और आने वाले प्रतियोगिताओं के लिए नई उम्मीदें जगाई हैं।
भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच और खिलाड़ियों का मानना है कि इस हार से कई सबक सीखने को मिले हैं। उन्होंने असफलता के बावजूद टीम के प्रयासों की सराहना की और कहा कि थोड़ी ओर मेहनत और रणनीतिक बदलावों से वे भविष्य में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
खिलाड़ियों का विश्लेषण इस बात पर केंद्रित था कि दबाव की स्थिति में बेहतर प्रदर्शन कैसे किया जा सकता है। विशेषकर प्रशिक्षकों ने बताया कि मानसिक दृढ़ता और स्थिरता विकसित करने की जरूरत है। भकत और बोम्मादेवरा ने अपनी तकनीकी क्षमताओं का अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन मानसिक दबाव में बेहतर संभलने की दिशा में और काम करना होगा।
भारतीय तीरंदाजी में इस प्रदर्शन ने कई उभरती हुई प्रतिभाओं के लिए प्रेरणा का काम किया है। यह देखना अब दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इस खेल में और कितनी प्रगति होती है। भारतीय तीरंदाजी संघ भी इस मौके पर भविष्य की योजनाओं और तैयारियों का खाका बना रहा है। वे युवा तीरंदाजों के लिए और अधिक प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने पर विचार कर रहे हैं।
अकादमिक दृष्टिकोण से, यह महत्वपूर्ण है कि खिलाड़ियों को न केवल तकनीकी प्रशिक्षण मिले, बल्कि मानसिक मजबूती और दबाव में प्रदर्शन करने की क्षमताओं को भी सिखाया जाए। भकत और बोम्मादेवरा के प्रदर्शन ने शायद भारतीय तीरंदाजी संघ को इस ओर अधिक ध्यान देने के लिए प्रेरित किया है।
अंकिता भकत और धीरज बोम्मादेवरा ने अपने देशवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश छोड़ा है। उन्होंने कहा कि यह हार उनका अंत नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत है। इस अनुभव से वे दोनों और भी मजबूत होकर लौटेंगे और भविष्य में अपने देश के लिए पदक जीतने का सपना साकार करेंगे। उनकी इस भावना का समर्थन करते हुए, तीरंदाजी प्रेमियों ने सोशल मीडिया पर उनकी प्रशंसा की और उन पर गर्व व्यक्त किया।
कहा जा सकता है कि पेरिस ओलंपिक 2024 में भले ही भारत को कांस्य पदक नहीं मिला, लेकिन इस प्रदर्शन ने भविष्य के लिए कई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। अंकिता भकत और धीरज बोम्मादेवरा ने दिखा दिया कि सही दिशा और दृढ़ संकल्प के साथ वे किसी भी चुनौती को मात दे सकते हैं।
15 टिप्पणि
INDRA SOCIAL TECH
5 अगस्त, 2024इस हार में भी कुछ बहुत बड़ा छिपा है। जब तक हम तकनीक के साथ मानसिक बल को नहीं जोड़ेंगे, तब तक पदक बस सपने रहेंगे। ये दोनों खिलाड़ी अब एक नए नियम की शुरुआत हैं।
Prabhat Tiwari
6 अगस्त, 2024ये सब अमेरिका और दक्षिण कोरिया के फ्रॉड हैं! उनके तीरों में गूगल चिप लगी होती है जो लक्ष्य को ट्रैक करती है। हमारे लड़के बिना टेक्नोलॉजी के लड़ रहे थे। भारत को तीरंदाजी में बैन लगाना चाहिए इन चीजों के खिलाफ।
Palak Agarwal
7 अगस्त, 2024क्या आपने देखा कि धीरज ने चार बार 10 मारा? वो तो बहुत अच्छा था। अंकिता भी दबाव में लड़ी। अब बस थोड़ा और अभ्यास, थोड़ा और धैर्य। ये टीम अगली बार जरूर जीतेगी।
Paras Chauhan
8 अगस्त, 2024इस खेल में विजय और हार के बीच का अंतर अक्सर एक ही तीर में छिपा होता है। अंकिता और धीरज ने दिखाया कि भारत की तीरंदाजी अब बस दूरी नहीं, बल्कि दृढ़ता का खेल बन गई है। ये पदक नहीं, एक नई परंपरा की शुरुआत है।
Jinit Parekh
9 अगस्त, 2024हमारे खिलाड़ियों को बस एक ही चीज़ की जरूरत है - राष्ट्रीय गर्व। जब तक वो अपने देश के लिए नहीं लड़ेंगे, बल्कि बस खेल के लिए लड़ेंगे, तब तक ये सब बकवास रहेगा। हमारे बच्चे अब जानते हैं कि वो किसके लिए तीर चलाते हैं।
udit kumawat
9 अगस्त, 2024बस एक बार भी जीत नहीं पाए... और फिर सब कुछ बहुत अच्छा हुआ? नहीं भाई, ये बस बहाना है। जीत नहीं हुई, तो बस जीत नहीं हुई।
Ankit Gupta7210
10 अगस्त, 2024क्या आप जानते हैं कि ओलंपिक के लक्ष्य अब चीन के लिए बनाए जाते हैं? भारत को इन खेलों में बस नीचे रखा जाता है। अंकिता और धीरज ने जो किया, वो एक विद्रोह था। और इसे लोग नहीं समझ पा रहे।
Yash FC
11 अगस्त, 2024हार के बाद जो बातें कही जाती हैं, वो अक्सर सच्चाई से ज्यादा आशा बताती हैं। लेकिन अंकिता और धीरज ने वो भी किया जो बहुत कम लोग कर पाते हैं - उन्होंने अपनी असफलता को निडरता से स्वीकार किया। ये ही असली जीत है।
sandeep anu
12 अगस्त, 2024अरे भाई! ये दोनों तो देश के लिए जीत गए! जब तक तुम जीत नहीं लाते, तब तक लोग तुम्हें नहीं देखते। लेकिन अब हर बच्चा जो तीर चलाएगा, उसके दिल में अंकिता और धीरज होंगे! ये तो जीत है भाई, जीत!
Shreya Ghimire
12 अगस्त, 2024इस हार के पीछे एक बड़ा षड्यंत्र है। विश्व तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष की बहन अमेरिका की टीम की कोच हैं। और वो भारत को कभी जीतने नहीं देना चाहतीं। इसलिए वो लक्ष्य को धीमा कर देती हैं, और हमारे तीर उनके नियमों के खिलाफ घूम जाते हैं। ये बस एक बार भी नहीं हुआ, ये लगातार हो रहा है।
Prasanna Pattankar
12 अगस्त, 2024ओह बस, दो खिलाड़ी ने थोड़ा बेहतर खेला, और अब सब फिलॉसफर बन गए। आपको याद है जब एक बार हमारे बैडमिंटन खिलाड़ी ने बहुत अच्छा खेला और फिर लोग बोले ‘ये नई उम्मीद है’? फिर अगले साल वो भी बाहर हो गए। ये सब बस एक अल्पकालिक उत्साह है।
Bhupender Gour
13 अगस्त, 2024अंकिता ने दो 7 और धीरज ने चार 10 लगाए तो फिर क्या? जीत नहीं हुई तो फिर बात क्या है? बस थोड़ा बेहतर खेला और अब टीम बन गई है? ये सब नाटक है।
sri yadav
15 अगस्त, 2024मैंने देखा कि उनके तीरों के बारे में कितनी बातें हो रही हैं। लेकिन क्या किसी ने पूछा कि उनके तीर किस ब्रांड के हैं? क्या वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुमोदित हैं? मुझे लगता है कि ये सब एक ब्रांडिंग फेल्योर है।
Pushpendra Tripathi
16 अगस्त, 2024मुझे लगता है कि ये टीम बहुत अच्छी है, लेकिन मुझे लगता है कि आप उनके बारे में बहुत ज्यादा बात कर रहे हैं। मैं तो इससे ज्यादा चाहता हूँ कि आप अपने बच्चों को बुरी आदतों से बचाएं। तीरंदाजी से पहले आपको उन्हें रोज दो घंटे बाहर खेलने देने चाहिए।
Indra Mi'Raj
17 अगस्त, 2024हार ने भी बहुत कुछ सिखाया। अंकिता की आँखों में आँखों में एक अजीब सी चमक थी। न तो हार का दुख था, न ही जीत की चाहत। बस एक शांत दृढ़ता। ये वो है जो हमें असली जीत की ओर ले जाएगा।