राहुल गांधी देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी के नेता हैं, जिन्होंने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर आरोप लगाए हैं। उनका तर्क है कि सरकारी नीतियों की आलोचना करने वाले उनके लेख के बाद, सरकार ऐसे उपायों का सहारा ले रही है जो स्वाधीन मीडिया आवाज़ों को दबाने की कोशिश करती है। खासकर, राहुल ने संकेत दिए कि मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री व्यवसायों से कुछ ऐसा कहवाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनकी असल राय नहीं है।
गांधी ने यह बयान एक ऐसे समय में दिया जब देश की राजनीति चारों ओर से घिरी हुई थी। उनके अनुसार, बड़े खिलाड़ियों को बढ़ावा देते हुए, मोदी सरकार ने बाजार में छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों के लिए अवसरों को कम कर दिया है। राहुल गांधी ने कहा कि एकाधिकार समर्थक नीतियां न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुँचाती हैं, बल्कि देश के भीतर अत्यधिक असमानता को भी बढ़ावा देती हैं।
अपने लेख में, राहुल गांधी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के हिंसात्मक अतीत की ओर इशारा किया, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकारवादी रवैये ने भारतीय वस्त्र एवं विनिर्माण उद्योग का गला घोंट दिया था। उन्होंने कहा कि यह बात गलत है कि हमने अपनी स्वतंत्रता एक अन्य राष्ट्र से खो दी थी; वास्तव में, हमने इसे एक ऐसे ताकतवर विदेशी निगम से खो दिया, जिसका एकमात्र उद्देश्य अपने स्वार्थ के लिए चीजों को नियंत्रित करना था।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के आर्थिक और प्रशासकीय व्यवस्थाओं को अपने फायदे के लिए इस प्रकार धकेला, जहाँ एकाधिकार खत्म होने का नाम नहीं लेता था। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि आज का भारत भी इसी खतरनाक मार्ग पर चल रहा है। गांधी का दावा है कि नए युग के एकाधिकारी व्यापारी अपनी सामर्थ्य और लोकसत्ता के बढ़ते प्रभावों के कारण, छोटे व्यापारियों को दबा रहे हैं।
यद्यपि राहुल गांधी ने खुद को व्यवसाय और उद्यमशीलता के खिलाफ नहीं बताया, उनका जोर था कि वे एकाधिकार और ओलिगोपोली के खिलाफ हैं। उन्होंने धारणा को खारिज किया कि वे व्यापारिक घरानों जैसे कि अडानी और अंबानी से शत्रुता रखते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे केवल उसी व्यवस्थित शक्ति के खिलाफ हैं, जो चुनिंदा लोगों को लाभान्वित करती है और बाजार में उचित प्रतिस्पर्धा की अवधारणा को नष्ट करती है।
जब बाजार में प्रतिस्पर्धा की बात आती है, तो राहुल गांधी का मानना है कि यह केवल शक्तिशाली संबंधों पर निर्भर करती है, न कि वास्तविक व्यापारिक क्षमताओं पर। यही कारण है कि वह आह्वान करते हैं कि भारत राजनीति व व्यापारिक संबंधों के बिना नीति पर केंद्रित हो कर आगे बढ़े।
लेख प्रकाशित होने के बाद, राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर व्यक्त किया कि उन्हें मिली जानकारी के अनुसार कई व्यवसाय अब ये कहने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं कि सरकारी योजनाएं कितना अच्छा काम कर रही हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि किस प्रकार सरकार असहमति की आवाजों को शान्त करने का प्रयास कर रही है। गांधी का यह विश्वास है कि उनकी लेखनी ने उन नीतियों को उजागर कर दिया है जो सरकार आलोचनाओं को दबाने के लिए अपना रही है।
इस संपूर्ण विवाद के बाद, एक नई बहस शुरू हो गई है। एक ऐसा समाज जहां विकास और व्यापार की दृष्टि व्यापक हो, वहां एकाधिकारवादी सत्ता की पकड़ कैसे कम हो सकती है, इस पर गहन विचार की आवश्यकता है। मुद्दा यह है कि क्या यह समय नहीं है कि पुनः स्वतंत्र और स्वाभाविक व्यापार का माहौल तैयार किया जाए, जो किसी भी अन्याय के चलते नुकसान नहीं पहुंचाता।
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