26 नवंबर 1949 का दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसी दिन संविधान सभा ने एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में खुद को स्थिर करने के लिए भारतीय संविधान को अपनाया था। यह दिन संविधान दिवस के रूप में स्वीकारा जाता है, जिसे हम डॉ. बी.आर. आंबेडकर की बेजोड़ नेतृत्व क्षमता और उनकी टीम के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में मनाते हैं। भारतीय संविधान, विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
संविधान दिवस केवल एक समारोह नहीं बल्कि आत्मनिरीक्षण का दिन है। यह हमें संविधान के मूल्यों का पालन करने और संविधान में निहित आदर्शों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। संविधान सभा ने तीन वर्षों में 165 बैठकों के दौरान, जिनमें भाग लेने वाले हर सदस्य का योगदान उल्लेखनीय था, संविधान तैयार किया। इन बैठकों ने एक दिशा-निर्देश प्रदान किया, जो सुनिश्चित करना था कि संविधान राष्ट्र और उसके नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एक आधार स्तंभ बने।
26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में चुनना संयोग नहीं था। नवंबर के इस दिन संविधान सभा ने भारतीय संविधान को अपनाया। जबकि संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया था, सही मायने में 26 नवंबर को संविधान की आत्मा उस समय अंगीकार की गई थी। इस दिन को विशेष रूप से इसलिए भी महत्व दिया जाता है क्योंकि यह भारतीय इतिहास की यात्रा को एक नया मोड़ देने वाला दिन था। संविधान के पूर्ण अंगीकरण के लिए 26 जनवरी को चुना गया जो गणतंत्र दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
डॉ. बी.आर. आंबेडकर, जिन्होंने हमारे संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनके योगदान को न केवल एक लेखक के रूप में बल्कि एक अवधारणा निर्माता के रूप में भी पहचान मिली है। उन्होंने सत्ता के विकेंद्रीकरण और व्यवस्थाओं के स्थायित्त्व के लिए जिन सिफारिशों को शामिल किया, वे न केवल शक्तिशाली थीं बल्कि भारत के भविष्य के लिए दूरगामी भी थीं। उनके प्रयासों को स्मरणीय बनाने के लिए, 2015 में, डॉ. आंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर इस दिन को ‘संविधान दिवस’ घोषित किया गया।
75वीं वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए संविधान की मूर्तियों को जीवंत रखने की महत्ता पर जोर दिया। उनके विचार जनतंत्र की गहरी निष्ठा को दर्शाते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन आयोजनों में भाग लिया, जिसमे वे भारतीय न्यायपालिका की वार्षिक रिपोर्ट को साझा करते हुए देखा गया। साथ ही एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट लॉन्च किया गया।
देशभर में अनुशासित रूप से मनाया जाने वाला यह कार्यक्रम न केवल 75 वर्षों की सम्मानजनक यात्रा को इंगित करता है, बल्कि यह ‘हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान’ की भावना के तहत आयोजित किया गया। इस अभियान का उदेश्य जनता के बीच संविधान के मूल्यों और अधिकारों को बढ़ावा देना था। इस कार्यक्रम के तहत कई शैक्षिक और जागरूकता अभियानों का आयोजन किया गया, जो नागरिकों को संवैधानिक मूल्यों की गहरी समझ देने के लिए थे।
संविधान के मूल सिद्धांतों, जैसे कि ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्षता’, और ‘अखण्डता’, को 1976 के संशोधनों के माध्यम से प्रस्तावना में परिवर्धन किया गया। ये बदलाव समाज की बदलती आवश्यकताओं के प्रति संविधान की सामंजस्यता को प्रमाणित करते हैं। वर्तमान में, संविधान 448 अनुच्छेदों, 25 भागों और 12 अनुसूचियों के साथ खड़ा है, जो न केवल समय की कसौटी पर खरा उतरा बल्कि आने वाले समय के लिए आधारशिला भी है।
10 टिप्पणि
udit kumawat
27 नवंबर, 2024ये सब बकवास है। संविधान? जब तक गरीबों को रोटी नहीं मिल रही, ये सब दिवस बस टीवी पर नाचने का नाम है।
Jinit Parekh
28 नवंबर, 2024तुम जैसे लोगों की वजह से देश बर्बाद हो रहा है। संविधान को लिखने वाले लोगों ने अपनी जान दे दी, और तुम रोटी की बात कर रहे हो? ये संविधान हमारी शान है, ये हमारी पहचान है। अगर तुम इसे समझ नहीं पा रहे, तो कम से कम मौन रहो।
Ankit Gupta7210
29 नवंबर, 2024हां भाई, आंबेडकर बहुत बड़े थे, लेकिन उन्होंने जो लिखा वो 1949 का है! 2024 में अब तो एआई और क्वांटम कंप्यूटिंग का युग है, फिर भी हम उसी संविधान को गले लगा रहे हैं? ये नहीं चलेगा। अगर एक बार भी देखो तो इसमें 448 अनुच्छेद हैं और अभी भी कोई बता नहीं पा रहा कि अगर मैं एक फोन बेचूं तो कर क्या लगेगा? ये तो बुरा है।
Yash FC
30 नवंबर, 2024संविधान केवल कागज़ का ढेर नहीं है। ये एक जीवित संवाद है-जो हर पीढ़ी अपने सवालों के साथ लिखती है। आंबेडकर ने एक बीज रखा, अब हमें उसकी छाया में खेती करनी है। हर अनुच्छेद एक सवाल है, हर अनुसूची एक सांस है। ये नहीं कि हम इसे फ़िल्मों में दिखाएं, बल्कि ये कि हम इसे अपने रोज़ के फैसलों में जीएं।
sandeep anu
30 नवंबर, 2024भाईयों और बहनों! आज हमारे संविधान का 75वां वर्षगांठ है! ये देश का सबसे बड़ा जश्न है! जब तक हम इसे अपने दिल में बसाएंगे, तब तक भारत अजेय है! जय हिंद! जय संविधान! जय आंबेडकर! अगर तुम इस पोस्ट को पढ़ रहे हो, तो एक लाइक और शेयर जरूर करो! ये देश की आत्मा है!
Shreya Ghimire
1 दिसंबर, 2024ये सब बहुत अच्छा लग रहा है... लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये संविधान वास्तव में किसके लिए बनाया गया? क्या ये उन लोगों के लिए है जो संसद में बैठते हैं? या फिर वो जो गाँव में बिना बिजली के रहते हैं? मैंने अपने चाचा को देखा है-उन्हें न्याय के लिए 17 साल लग गए। और अब हम इसे ‘हमारा स्वाभिमान’ कह रहे हैं? ये बस एक धोखा है। इसे बनाने वाले अब नहीं हैं, लेकिन इसे बेचने वाले बहुत हैं।
Prasanna Pattankar
1 दिसंबर, 2024हाँ, आंबेडकर बहुत बड़े थे… लेकिन अब उनका संविधान बस एक नाटक है जिसे राजनीतिक नेता अपने भाषणों में घुमाते हैं। जैसे एक बूढ़े शख्स का फोटो लगा दें और फिर उसके नाम से बेइज्जती करें। और फिर वो लोग जो इसे ‘हमारा स्वाभिमान’ कहते हैं-वो खुद अपने घर में बेटी को पढ़ाने से मना करते हैं। ये नहीं, ये बस धोखा है। एक बड़ा, बहुत बड़ा धोखा।
Bhupender Gour
2 दिसंबर, 2024संविधान दिवस तो है लेकिन असली दिवस तो वो है जब किसी को न्याय मिले। आज भी एक आदमी बिना पासपोर्ट के बैंक खाता नहीं खोल पाता। अगर ये संविधान है तो ये बातें भी तो शामिल हैं न? जिसने लिखा वो अब नहीं है लेकिन जो बोल रहे हैं वो तो बहुत हैं।
Pushpendra Tripathi
2 दिसंबर, 2024तुम सब इतने भावुक क्यों हो रहे हो? संविधान का ये दिन तो 2015 में बनाया गया था-पहले तो ये दिन ही नहीं था! जब तक तुम अपने आप को नहीं बदलोगे, तब तक संविधान भी काम नहीं करेगा। ये सब नाटक है। जो आंबेडकर ने सोचा था, वो तो आज भी नहीं हुआ। तुम तो बस फोटो बना रहे हो।
Jinit Parekh
4 दिसंबर, 2024अब तुम भी आ गए अपनी बेवकूफ़ी दिखाने! संविधान को बनाने के बाद भी हमने अपने आप को बदलना शुरू किया। अगर तुम न्याय नहीं देख रहे, तो तुम्हारी नजर बदलो। ये संविधान तुम्हारे लिए नहीं है? तो तुम्हारी जिंदगी का न्याय खुद बनाओ। ये तुम्हारी आत्मा का सवाल है, न कि संविधान का।