भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 19 अप्रैल, 2017 को कृषि कर्मण पुरस्कार 2015-16 के लिए तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा को चुना। ये तीनों राज्य अलग-अलग श्रेणियों में खाद्य अन्न उत्पादन में असाधारण प्रदर्शन के लिए सम्मानित हुए। तमिलनाडु ने 10 मिलियन टन से अधिक अन्न उत्पादन के साथ बड़ी श्रेणी में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, हिमाचल प्रदेश ने पहाड़ी भूमि में उत्पादन में अद्वितीय वृद्धि दिखाई, और त्रिपुरा ने 1 मिलियन टन से कम उत्पादन वाली छोटी श्रेणी में अपनी उत्कृष्ट प्रगति के लिए पुरस्कार पाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश को व्यक्तिगत रूप से पुरस्कार प्रदान किया।
कृषि कर्मण पुरस्कार: एक ऐतिहासिक पहल
यह पुरस्कार वर्ष 2010-11 में राजस्थान के जयपुर में आयोजित एक बैठक के बाद शुरू किया गया था। तब खाद्य अन्न उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति बनाई गई। इसका उद्देश्य सिर्फ उत्पादन नहीं, बल्कि उत्पादकता में स्थायी सुधार को प्रोत्साहित करना था। इसकी शुरुआत तब हुई जब भारत के कई राज्य अपने खेती के आँकड़ों में असमानता दिखा रहे थे। कुछ राज्य बड़े पैमाने पर अन्न उत्पादन कर रहे थे, तो कुछ छोटे और पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन और जलवायु की कमी से पीड़ित थे। इसलिए पुरस्कार को तीन श्रेणियों में बाँटा गया: श्रेणी I (10 मिलियन टन से अधिक), श्रेणी II (1-10 मिलियन टन) और श्रेणी III (1 मिलियन टन से कम)।
तमिलनाडु: बड़ी श्रेणी में स्थायी उत्पादन का मिसाल
तमिलनाडु ने 2015-16 के खेती के साल में 10.8 मिलियन टन खाद्य अन्न उत्पादित किया। यह संख्या उसके पिछले पांच साल के औसत से 12% अधिक थी। यहाँ किसानों ने जल संचयन, द्वि-फसली खेती और आधुनिक बीज प्रौद्योगिकी का संयोजन किया। राज्य के कृषि विभाग ने अपने किसानों को सीधे सब्सिडी देकर उन्हें नए बीज और सिंचाई उपकरणों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। यह एक ऐसा राज्य है जहाँ चावल की फसल न केवल बड़े पैमाने पर होती है, बल्कि यहाँ की जलवायु और मिट्टी के अनुकूल अन्य अनाज भी उगाए जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश: पहाड़ों में असंभव को संभव बनाना
हिमाचल प्रदेश के लिए यह पुरस्कार एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस राज्य में 70% से अधिक भूमि पहाड़ी है, जहाँ ट्रैक्टर तक नहीं जा सकते। फिर भी, 2015-16 में इसका खाद्य अन्न उत्पादन 1.8 मिलियन टन तक पहुँच गया — पिछले वर्ष की तुलना में 18% की बढ़ोतरी। किसानों ने छोटे-छोटे खेतों में बर्फीले पानी के बहाव का उपयोग किया, जिसे स्थानीय भाषा में ‘कुल्लू’ कहते हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार ने फसल बीमा और बाजार जुड़ाव के लिए मोबाइल ऐप लॉन्च किए। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ‘पहाड़ों में खेती की एक नई अवधारणा’ कहा।
त्रिपुरा: उत्तर-पूर्व की छोटी जीत
त्रिपुरा के लिए यह पुरस्कार एक अनोखी बात है। इस राज्य का कुल खाद्य अन्न उत्पादन 2015-16 में 8.4 लाख टन था — अभी तक इस श्रेणी में सबसे अधिक। पिछले वर्ष यह संख्या 6.1 लाख टन थी। यहाँ के किसानों ने बांस के आधार पर बने घरों में खेती करने की नई तकनीक अपनाई, जिसे ‘बांस ट्री फार्मिंग’ कहा जाता है। इससे न केवल जमीन बची, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भी बचा गया। त्रिपुरा के कृषि मंत्री ने कहा, ‘हमने अपनी छोटी जमीन को बड़ी उपलब्धि में बदल दिया।’
पुरस्कार की संरचना और प्रभाव
इन पुरस्कारों का राशि वितरण इस प्रकार है: श्रेणी I, II, III के लिए प्रत्येक राज्य को 2 करोड़ रुपये, और अलग-अलग फसलों (चावल, गेहूँ, दाल, अनाज, तिलहन) के लिए 1 करोड़ रुपये। पिछले साल छत्तीसगढ़ चावल और हरियाणा गेहूँ के लिए पुरस्कृत हुआ था। यह पुरस्कार सिर्फ धन नहीं, बल्कि राज्यों के लिए एक प्रतिष्ठा का प्रतीक है। इसका असर अभी तक दिख रहा है — अब कई अन्य राज्य भी अपने खेती के ढंग बदल रहे हैं।
भविष्य क्या है?
2017 के बाद से अब तक 5 और राज्यों ने इस पुरस्कार के लिए आवेदन किया है। मंत्रालय ने अब डिजिटल डेटा सत्यापन की प्रक्रिया शुरू कर दी है — जिसमें उपग्रह छवियाँ और किसानों के मोबाइल डेटा का उपयोग होता है। अगले वर्ष असम और मेघालय को भी इस पुरस्कार की उम्मीद है। यह पुरस्कार अब एक राष्ट्रीय खेती का बेंचमार्क बन चुका है।
पूछे जाने वाले प्रश्न
कृषि कर्मण पुरस्कार क्यों महत्वपूर्ण है?
यह पुरस्कार सिर्फ उत्पादन को नहीं, बल्कि उत्पादकता में स्थायी सुधार को प्रोत्साहित करता है। इससे राज्यों को अपनी खेती की नीतियों को सुधारने का प्रेरणा मिलता है। इसके लिए राज्यों को न केवल अधिक उत्पादन करना होता है, बल्कि पिछले वर्षों की तुलना में उत्पादन में लगातार वृद्धि भी दिखानी होती है।
त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य को कैसे यह पुरस्कार मिला?
त्रिपुरा को उसके छोटे आकार के बावजूद इस पुरस्कार के लिए चुना गया क्योंकि यहाँ खाद्य अन्न उत्पादन में 38% की वृद्धि हुई — जो इस श्रेणी में सबसे अधिक थी। इस राज्य ने छोटे खेतों में बांस के आधार पर खेती और जल संरक्षण की नई तकनीकों को अपनाया, जिससे उत्पादन में क्रांति आई।
हिमाचल प्रदेश में पहाड़ों पर खेती कैसे संभव हुई?
हिमाचल प्रदेश ने बर्फीले पानी के प्राकृतिक बहाव को नहरों के माध्यम से खेतों तक पहुँचाने की विधि अपनाई, जिसे ‘कुल्लू’ कहते हैं। इसके अलावा, छोटे खेतों के लिए हल्के ट्रैक्टर और ड्रोन द्वारा बीज बोने की तकनीक शुरू की गई। इन्हें स्थानीय किसानों ने अपनाया और उत्पादन दोगुना हो गया।
क्या इन पुरस्कारों से किसानों को सीधा लाभ होता है?
हाँ। राज्य सरकारें इन पुरस्कारों के धन का उपयोग किसानों के लिए सीधे सब्सिडी, बीज और सिंचाई उपकरणों के लिए करती हैं। तमिलनाडु ने इस धन से 15,000 किसानों को नए बीज और स्मार्ट सिंचाई सिस्टम दिए। इससे उनकी आय और उत्पादकता दोनों बढ़ी।
क्या यह पुरस्कार अभी भी जारी है?
हाँ, यह पुरस्कार अभी भी जारी है। 2023-24 के लिए भी चयन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अब डिजिटल डेटा और उपग्रह छवियों का उपयोग उत्पादन के आँकड़ों की पुष्टि के लिए किया जा रहा है, जिससे पारदर्शिता बढ़ रही है।