लाल बहादुर शास्त्री, भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, ऐसे नेता थे जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि स्वतंत्रता के बाद देश के विकास में भी अहम योगदान दिया। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को वाराणसी में हुआ था। शास्त्री की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी के हरिश्चंद्र हाई स्कूल में हुई और बाद में उन्होंने काशी विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की। यहां से मिली 'शास्त्री' की उपाधि उनकी पहचान का हिस्सा बन गई।
लाल बहादुर शास्त्री 1926 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और जल्द ही स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख कार्यकर्ता बन गए। उन्होंने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। शास्त्री का राजनीतिक सफर देश सेवा और जनसेवा के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है। जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 1964 में शास्त्री को प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। उनके कार्यकाल में कई बड़े फैसले हुए जो देश के भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित हुए।
लाल बहादुर शास्त्री का दिया हुआ नारा 'जय जवान जय किसान' आज भी देश के सैनिकों और किसानों की अहमियत को दर्शाता है। यह नारा उस समय के लिए अत्यंत प्रासंगिक था जब देश ने अपने रक्षा और कृषि क्षेत्रों में उन्नति की ओर कदम बढ़ाया। शास्त्री जानते थे कि अगर देश को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना है तो हमें अपने जवानों और किसानों पर ध्यान देना होगा। उनके इस नारे ने पूरा देश को एक नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की।
लाल बहादुर शास्त्री के विचार आज भी हमें अपनी सादगी और परिश्रम के प्रति अनुशासित रहने की प्रेरणा देते हैं। शास्त्री ने हमेशा संयुक्त और समर्पित प्रयासों की महत्ता पर जोर दिया। उनका कहना था कि देश की उन्नति के लिए हर नागरिक का योगदान महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा "एकता में ही ताकत है और मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता।" उनके ये शब्द आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
शास्त्री का कार्यकाल हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के लिए जाना जाता है, जो भारत की कृषि उत्पादन और दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण थे। ये परिवर्तन न केवल देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मददगार साबित हुए, बल्कि भारत को खाद्य सुरक्षा के मामले में पड़ने वाले दबाव से भी मुक्त किया। शास्त्री की ये क्रांतियाँ आज भी उनकी दूरदर्शिता और साहसिक नेतृत्व की गवाही देती हैं।
लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल, हालांकि छोटा था, लेकिन उनकी उपलब्धियाँ अत्यधिक महत्वपूर्ण थीं। 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ युद्ध, और उसके बाद ताशकंद समझौता इस बात की गवाही देते हैं कि शास्त्री शांति में विश्वास रखते थे और युद्ध का समाधान बातचीत के माध्यम से करना चाहते थे। लेकिन दुर्भाग्यवश, 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में उनका असमायिक निधन हो गया, और उन्होंने अपनी अंतिम सांस अपनी मातृभूमि के प्रति वचनबद्धता के साथ ही ली।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सदैव हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनकी सादगी, परिश्रम और देशभक्ति का हर भारतीय के जीवन में एक विशेष स्थान है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सरलता में ही शक्ति है और परिश्रम का कोई विकल्प नहीं होता। उनकी कही गई बातें और किया गया कार्य न केवल भारतीय राजनीति में अपितु प्रत्येक भारतीय के जीवन में उस सिद्धांत की तरह हैं जो जीवन भर मार्गदर्शन करते रहते हैं।
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