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अफ्रीका में एमपॉक्स प्रकोपों को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित: क्या है एमपॉक्स?

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अफ्रीका में एमपॉक्स प्रकोपों को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित: क्या है एमपॉक्स?

एमपॉक्स: एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अफ्रीका में फैल रहे एमपॉक्स के प्रकोपों को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया है। यह घोषणा अफ्रीका सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) द्वारा इस सप्ताह के शुरू में एमपॉक्स प्रकोपों को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में पहचानने के बाद की गई है। डब्ल्यूएचओ की यह घोषणा उसके सबसे उच्चतम स्तर की चेतावनी है, जो अफ्रीका और उसके आसपास के क्षेत्रों में इस वायरस के और अधिक प्रसार की संभावना पर गंभीर चिंता को दर्शाती है।

क्या है एमपॉक्स?

एमपॉक्स, जिसे मंकीपॉक्स के रूप में भी जाना जाता है, एक वायरल रोग है जो स्मॉलपॉक्स (छोटी माता) के परिवार से संबंधित है। हालांकि, इसमें छोटे माता के मुकाबले कम गंभीर लक्षण होते हैं। इसमें बुखार, ठंड लगना, और शरीर में दर्द जैसे लक्षण होते हैं। गंभीर मामलों में चेहरा, हाथ, छाती और जननांगों पर घाव भी हो सकते हैं।

इस वर्ष, एमपॉक्स को 13 देशों में पाया गया है और विशेषकर कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में इसके 96% से अधिक मामले और मौतें हुई हैं। अब तक कुल 14,000 से अधिक मामले और 524 मौतें दर्ज की गई हैं।

प्रकोप की गंभीरता

कांगो में उभर रहा एमपॉक्स का नया रूप 3-4% मृत्युदर के साथ आता है और इसके प्राथमिक लक्षण जननांगों पर घाव हैं, जिससे इसे पहचानना मुश्किल हो जाता है।

बालकों में बढ़ रहे हैं मामले

2022 के वैश्विक प्रकोप के विपरीत, जिसमें ज्यादातर मामले समलैंगिक और उभयलिंगी पुरुषों में पाए गए थे, इस बार कांगो में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 70% से अधिक मामले और 85% मौतें दर्ज की गई हैं।

वैक्सीन और उपचार की मांग

वैक्सीन और उपचार की मांग

अफ्रीका में वैक्सीन और उपचारों की कमी ने प्रकोप को नियंत्रित करने के प्रयासों को बाधित किया है। डब्ल्यूएचओ का यह आपातकालीन घोषणा दान एजेंसियों और देशों को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करने का उद्देश्य रखती है ताकि आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जा सकें।

विशेषज्ञ इस वायरस के फैलने की संभावना से चिंतित हैं, खासकर शरणार्थी शिविरों में। यह देखते हुए वैक्सीन और उपचार की ज्यादा जरूरत है।

डब्ल्यूएचओ की भूमिका

डब्ल्यूएचओ की घोषणा का उद्देश्य इस प्रकार की आपातकालीन स्थिति में संसाधनों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को गतिशील करना है। पहले की घोषणाओं के बावजूद, वैश्विक प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही हैं और विशेषज्ञ पुराने गलतियों को दोहराने के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं।

स्थिति अभी भी गंभीर है और संक्रमण के सबसे बड़े जोखिम कारकों को समझने तथा टीकाकरण रणनीतियों को प्रभावी ढंग से मार्गदर्शन करने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं।

15 टिप्पणि

sandeep anu
sandeep anu
17 अगस्त, 2024

इस वायरस को लेकर दुनिया भर में इतना शोर मचा है कि लगता है जैसे कोई नया बीमारी खोज ली गई है। लेकिन अफ्रीका में ये तो सालों से है, अब तक कोई ध्यान नहीं दे रहा था। जब यूरोप और अमेरिका में भी कुछ मामले आए, तभी वैश्विक आपातकाल घोषित हुआ। ये दोहरा मानक है।

Shreya Ghimire
Shreya Ghimire
18 अगस्त, 2024

ये सब एक बड़ी साजिश है। वैक्सीन कंपनियां और विश्व स्वास्थ्य संगठन एक साथ मिलकर लोगों को डरा रहे हैं ताकि वे अपनी नई टीकों बेच सकें। अफ्रीका में बच्चों को टीका लगाने का नाम लेकर उनके जीन्स में बदलाव करने की कोशिश हो रही है। ये जैविक युद्ध है। लोग जागो।

Prasanna Pattankar
Prasanna Pattankar
19 अगस्त, 2024

तो फिर ये वैक्सीन कहाँ हैं? जब बात आती है तो डब्ल्यूएचओ बोलता है ‘आपातकाल’... लेकिन जब बार-बार बच्चे मर रहे हैं, तो वो क्यों नहीं भेज रहे? क्योंकि वो जानते हैं कि अफ्रीका के लिए इन टीकों की कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। ये सब एक नाटक है, जिसमें अमीर देशों के लोग बैठे हैं और गरीबों के बच्चे मर रहे हैं।

Bhupender Gour
Bhupender Gour
21 अगस्त, 2024

क्या ये वायरस वाकई इतना खतरनाक है या बस मीडिया ने इसे बड़ा बना दिया? लोग डर रहे हैं लेकिन कोई भी नहीं बता रहा कि इसका असली रास्ता क्या है। बस टीका टीका करके बैठ गए।

sri yadav
sri yadav
22 अगस्त, 2024

अफ्रीका के बच्चों को टीका नहीं मिल रहा है? शायद इसलिए क्योंकि अफ्रीका अभी भी ‘अनसुलझी’ समस्या है जिसे दुनिया ने नजरअंदाज कर दिया। लेकिन जब यूरोप में एक आदमी को घाव आया, तो तुरंत दुनिया भर में घंटियां बज गईं। ये नस्लवाद नहीं तो क्या है?

Pushpendra Tripathi
Pushpendra Tripathi
23 अगस्त, 2024

क्या आपने कभी सोचा है कि ये वायरस बच्चों को इतना प्रभावित क्यों कर रहा है? क्योंकि वे अपने घरों में अकेले हैं। माता-पिता बीमार हैं या मर चुके हैं। ये वायरस नहीं, ये गरीबी है जो बच्चों को मार रही है। और हम सब इसके बारे में बात करते हैं जैसे ये एक नया फैशन ट्रेंड है।

Indra Mi'Raj
Indra Mi'Raj
25 अगस्त, 2024

मैंने एक डॉक्टर को बात करते सुना था जो कांगो में काम करता है। वो बोले कि बच्चों को देखने के लिए घंटों की लाइन लगती है। कोई टीका नहीं, कोई दवा नहीं, बस एक गीला कपड़ा और एक आशा। ये दुनिया का दर्द है।

Harsh Malpani
Harsh Malpani
26 अगस्त, 2024

मैंने एक बार अफ्रीका के एक गांव में एक बच्चे को देखा था जिसके हाथ में घाव थे। उसकी मां ने कहा - ‘ये तो बहुत पुराना बीमारी है, हमें तो ये जानते हैं।’ लेकिन दुनिया ने अभी तक नहीं देखा।

INDRA SOCIAL TECH
INDRA SOCIAL TECH
27 अगस्त, 2024

इस वायरस के बारे में ज्यादा जानकारी चाहिए। लोग डर रहे हैं लेकिन कोई नहीं बता रहा कि ये कैसे फैलता है। क्या ये हवा से फैलता है? या संपर्क से? क्या बच्चों के लिए कोई खास सावधानी है? ये सवालों का जवाब नहीं मिल रहा।

Prabhat Tiwari
Prabhat Tiwari
28 अगस्त, 2024

हम भारत के लिए इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं? ये वायरस अफ्रीका में है, हमारे यहां तो अभी तक कोई मामला नहीं आया। फिर भी ये आपातकाल घोषित करने की जरूरत क्या है? ये सब बाहरी शक्तियों का दबाव है। हमें अपने देश की रक्षा करनी होगी।

Palak Agarwal
Palak Agarwal
30 अगस्त, 2024

एक बात समझ आ रही है - जब तक लोगों को टीका नहीं मिलेगा, तब तक ये वायरस बंद नहीं होगा। लेकिन इसके लिए बस एक चीज चाहिए - इरादा। दुनिया के पास टीके हैं, बस उन्हें भेजने का इरादा नहीं है।

Paras Chauhan
Paras Chauhan
31 अगस्त, 2024

मुझे लगता है कि ये वायरस अब तक बच्चों को इतना प्रभावित क्यों कर रहा है? क्योंकि वो अपने घरों में अकेले हैं। माता-पिता बीमार हैं या मर चुके हैं। ये वायरस नहीं, ये गरीबी है जो बच्चों को मार रही है। और हम सब इसके बारे में बात करते हैं जैसे ये एक नया फैशन ट्रेंड है।

Jinit Parekh
Jinit Parekh
31 अगस्त, 2024

हम भारत के लिए इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं? ये वायरस अफ्रीका में है, हमारे यहां तो अभी तक कोई मामला नहीं आया। फिर भी ये आपातकाल घोषित करने की जरूरत क्या है? ये सब बाहरी शक्तियों का दबाव है। हमें अपने देश की रक्षा करनी होगी।

udit kumawat
udit kumawat
2 सितंबर, 2024

ये वायरस क्या है, इसके बारे में कोई नहीं बता रहा, लेकिन आपातकाल घोषित कर दिया गया है - ये तो बस एक बड़ा शोर है।

Ankit Gupta7210
Ankit Gupta7210
4 सितंबर, 2024

अफ्रीका में बच्चों की मौतें बढ़ रही हैं, लेकिन दुनिया का ध्यान तभी आया जब यूरोप में भी कुछ मामले आए। ये नस्लवाद है। अफ्रीकी बच्चों की जान इतनी सस्ती है कि उनके लिए टीका भेजने की जरूरत नहीं।

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