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नारायण मूर्ति: भारतीय आईटी का पायोनियर

अगर आप तकनीक या व्यवसाय से जुड़े हैं तो शायद आपने नारायण मूर्ति का नाम सुना होगा। वही व्यक्ति जिसने एक छोटे कमरे में शुरू करके Infosys को विश्व स्तर पर ले जाया। इस लेख में हम उनके जीवन के अहम हिस्सों, संघर्ष और सफलता के रहस्य को आसान भाषा में बताएँगे ताकि आप उनसे सीख सकें।

शुरुआत: परिवार, शिक्षा और शुरुआती चुनौतियां

नारायण मूर्ति 1946 में कर्नाटक के एक छोटे गाँव में पैदा हुए। बचपन से ही उन्हें पढ़ाई‑लिखाई में रुचि थी, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति आसान नहीं थी। उन्होंने कम उम्र में काम करना शुरू किया और कई बार नौकरी बदलते रहे, जिससे मेहनत का असली मतलब पता चला।

इंजीनियरिंग के बाद वे इलेक्ट्रॉनिक्स में ग्रेजुएट हुए और कुछ सालों तक विभिन्न कंपनियों में काम किया। इस दौरान उन्हें भारत में सॉफ्टवेयर सेवाओं की कमी दिखाई दी। यही विचार उनके दिमाग में आई कि क्यों न एक ऐसी कंपनी बनायी जाये जो दुनिया को भारतीय तकनीक प्रदान करे।

Infosys का जन्म और सफलता के सूत्र

1978 में, मूर्ति ने सात साथी इंजीनियर्स के साथ Infosys की स्थापना की। शुरुआती दौर में ऑफिस सिर्फ एक छोटे कमरे में था जहाँ दो मेज़ और कुछ कंप्यूटर थे। उन्होंने कर्मचारियों को ‘समुदाय’ समझा और सभी को समान अधिकार दिया। यह विचार आज भी Infosys की संस्कृति का हिस्सा है।

पहली बड़ी चुनौती थी क्लाइंट हासिल करना। मूर्ति ने अपने नेटवर्क से छोटे प्रोजेक्ट लिये, भरोसा बनाया और धीरे‑धीरे बड़े अनुबंध मिलते गए। उनका मानना था कि ग्राहक संतुष्टि ही सबसे बड़ा मार्केटिंग टूल है। इस सिद्धान्त पर चलते हुए Infosys ने 1990 के दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कदम रखा।

सफलता का एक मुख्य कारण उनके नेतृत्व शैली में ‘विकास की मानसिकता’ थी। उन्होंने कर्मचारियों को लगातार सीखने, नई तकनीक अपनाने और जोखिम लेने के लिए प्रेरित किया। इससे कंपनी ने सॉफ्टवेयर विकास, कंसल्टिंग और डिजिटल सेवाओं में विविधीकरण किया।

आज Infosys 200 से अधिक देशों में काम करता है, लाखों करोड़ की टर्नओवर रखता है और कई पुरस्कार जीत चुका है। मूर्ति का कहना था – “सपनों को बड़ी स्क्रीन पर नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के कार्यों में जीना चाहिए।” यह विचार छोटे‑से‑स्टार्टअप को भी बड़े लक्ष्य रखने की हिम्मत देता है।उनकी कहानी से हमें तीन प्रमुख सीख मिलती हैं:

  • सही टीम बनाओ: भरोसा और समानता पर आधारित टीम दीर्घकालिक सफलता देती है।
  • ग्राहक को प्राथमिकता दो: संतुष्ट ग्राहक नई परियोजनाओं का सबसे बड़ा स्रोत होता है।
  • सतत सीखो और बदलते रहो: तकनीकी दुनिया तेज़ी से बदलती है, इसलिए खुद को अपडेट रखना ज़रूरी है।

नारायण मूर्ति ने सिर्फ एक कंपनी नहीं बनाई, बल्कि भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग की दिशा भी बदली। अगर आप उद्यमी हैं या करियर में नई ऊँचाइयाँ छूना चाहते हैं तो उनकी कहानी को पढ़ें, समझें और अपने काम में लागू करें। सफलता का कोई जादुई फार्मुला नहीं, बस सही सोच, मेहनत और धैर्य चाहिए – यही मूर्ति ने हमें सिखाया।

7 नव॰

ऋषि सुनक और अक्षता मूर्ति का बेंगलुरु मंदिर यात्रा: पारिवारिक समय और स्थानीय गतिविधियों का आनंद

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ऋषि सुनक और अक्षता मूर्ति का बेंगलुरु मंदिर यात्रा: पारिवारिक समय और स्थानीय गतिविधियों का आनंद

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक अपनी पत्नी अक्षता मूर्ति और उनके माता-पिता नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति के साथ बेंगलुरु के एक मंदिर में गए। इसके बाद वे जेयनगर स्थित थर्ड वेव कॉफी हाउस में देखे गए। यह यात्रा सुनक परिवार के लिए व्यक्तिगत महत्व रखती है, जिसमें उन्होंने अपने प्रियजनों के साथ समय बिताया और कुछ स्थानीय गतिविधियों का लुत्फ उठाया।

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