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माननीय मनमोहन सिंह की प्रमुख reform: MNREGA, RTI, RTE और आधार की कहानी

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माननीय मनमोहन सिंह की प्रमुख reform: MNREGA, RTI, RTE और आधार की कहानी

रोज़मर्रा की जरूरतों को नीति में बदलना

जब 2004 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया, तो देश की अर्थव्यवस्था पहले ही 1991 की उदारीकरण नीति से खुल चुकी थी, लेकिन असमानता की रेखा अभी भी गहरी थी। शहरी‑शहरी विकास की चमक के पीछे गांवों में बेरोज़गारी, कर्ज और शिक्षा की कमी छिपी हुई थी। इन समस्याओं को हल करने के लिए सिंह ने ‘समावेशी विकास’ की राह अपनाई, जिसमें MNREGA को सबसे प्रमुख कदम माना गया।

2005 में मनोनीत महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) ने ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन का वेतनभुगतान वाला काम दिया। यह केवल रोजगार नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुरक्षा जाल था। शुरूआत में यह योजना पाँच राज्यों में लागू हुई, परन्तु दो साल में इसकी पहुँच 600 से अधिक जिलों तक पھیل गई। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 2005‑2014 में इस योजना ने 8 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को आय प्रदान की, जिससे धरणी‑सीमित क्षेत्रों में प्रवास कम हुआ और महँगी खेती‑कीट‑रोग नियंत्रण में मदद मिली।

सिंह ने MNREGA को ‘काम, गरिमा और अधिकार’ के तंत्र के रूप में देखा। उनका मानना था कि काम सिर्फ कमाई नहीं, बल्कि व्यक्तिगत सशक्तिकरण का माध्यम है। इस कारण सरकार ने प्रत्येक ग्राफ़्टेड ग्राम में एक ‘पब्लिक वर्क्स बोर्ड’ स्थापित किया, जहाँ स्थानीय लोग खुद निर्णय ले सकते थे कि किस प्रकार के काम करने हैं – सड़कों का निर्माण, जलसंरक्षण, या स्कूल‑बिल्डिंग का मरम्मत। इस भागीदारी मॉडल ने न सिर्फ नियोजन को पारदर्शी बनाया, बल्कि स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यों को प्राथमिकता दी।

पारदर्शिता, शिक्षा और पहचान के तीन स्तम्भ

पारदर्शिता, शिक्षा और पहचान के तीन स्तम्भ

2005 में लागू हुआ Right to Information (RTI) अधिनियम भारत में सरकारी पारदर्शिता की बुनियाद रखी। इससे नागरिकों को किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से जानकारी माँगने का अधिकार मिला, और उन्होंने इसे ‘नागरिक शक्तिकरण’ कहा। पहले वर्ष में ही 4 लाख से अधिक RTI आवेदन दर्ज हुए, जिसमें अनियमित वेध, भ्रष्टाचार और सरकारी विलंब के मामलों का खुलासा हुआ। एक ग्रामीण महिला ने अपने गाँव में जलपेय योजना में धन लूटने वाले अधिकारियों को उजागर किया, जिससे कई भ्रष्टाचारियों को कड़ी सजा मिली। इस प्रक्रिया ने नागरिकों को सरकार के कार्यों पर नजर रखनी सिखाई, और कई राज्यों ने RTI के तहत अपना ‘सूचना पोर्टल’ स्थापित किया।

शिक्षा के अधिकार को सुदृढ़ करने हेतु 2009 में Right to Education (RTE) अधिनियम पारित हुआ। यह कानून 6‑14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। इसके तहत हर स्कूल को ‘प्राथमिक विद्यालय’ बनाना अनिवार्य हो गया, और राज्य को प्रति वर्ष 1080 रुपये प्रत्येक बच्चा‑प्रति शिक्षा के लिए प्रदान करना तय किया गया। इस पहल के परिणामस्वरूप 2015 तक प्राथमिक विद्यालय प्रवेश दर 96% तक पहुँच गई। ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से बालिका शिक्षा में उल्लेखनीय उछाल आया; कई गांवों में पहले जहां लड़कियों को स्कूल भेजना असंभव माना जाता था, अब वे उच्च शिक्षा की ओर देख रही हैं।

2009 में शुरू हुई आधार (Aadhaar) योजना ने भी समाज में गहरा परिवर्तन लाया। दुनिया की सबसे बड़ी बायो‑मैट्रिक पहचान प्रणाली होने के नाते, इसने हर नागरिक को 12‑अंकों का यूनिक आईडी दिया। इस आईडी ने बैंकिंग, सब्सिडी वितरण और पेंशन अधिकार में त्रुटियों को घटाया। 2013 में केवल 2.5 करोड़ खातों में किराया या सब्सिडी का निकास देर से हो रहा था; आधार के माध्यम से यह प्रतिशत 0.2% तक गिर गया। साथ ही, योजना ने डिजिटल इंडिया की नींव भी रखी, जिससे मोबाइल बैंकिंग, ई‑गवर्नेंस और ऑनलाइन लर्निंग के नए द्वार खुले।

इन प्रमुख पहलों के अलावा सिंह सरकार ने कई अन्य सामाजिक एवं आर्थिक उपाय अपनाए। 2008 में किसानों के कर्ज़ माफ़ी (ऋण माफी) योजना के तहत 60,000 करोड़ रुपये की राशि के साथ 14.5 लाख किसानों को राहत मिली। कृषि‑समानता को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को सुदृढ़ किया और जलवायु‑सुरक्षित खेती के मॉडल ग्रामों को प्रायोजित किया। विदेश नीति में 2006 में भारत‑अमेरिका सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट (123 एग्रीमेंट) ने भारत को उन्नत न्यूक्लियर तकनीक प्राप्त करने का अवसर दिया, जिससे ऊर्जा सुरक्षा में बड़ा कदम बढ़ा।

डॉ. सिंह की नीतियों में उनके व्यक्तिगत मूल्यों—ईमानदारी, कड़ी मेहनत और सहानुभूति—का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखता है। वे अक्सर ‘स्ट्रेटेजिक इनविज़न’ से काम करते थे, जहाँ आर्थिक विकास को सामाजिक समावेशन के साथ जोड़ते थे। उनका मानना था कि “एक राष्ट्र तभी प्रगति करेगा जब उसका हर नागरिक बुनियादी अधिकार और अवसरों से सशक्त हो”। इस सिद्धांत ने ही सभी प्रमुख कानूनों के निर्माण में ऊर्जा दी, चाहे वह ग्रामीण रोजगार के लिये MNREGA हो या हर बच्चे के लिये RTE।

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